Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६३८ रहते हुए मनुष्यगतियुत २९ प्रकृतिक बन्ध और ९२ व ९० प्रकृतिक सत्त्व है। त्रसतिर्यञ्चोंके शरीरपर्याप्तिकालमें उद्योतसहित २९ प्रकृतिक उदय रहते हुए मिथ्यात्वगुणस्थानमें २३-२५-२६-२८२९ व ३० प्रकृतिक बन्धसहित ९२-९०-८८ और ८४ प्रकृतिका सत्त्व है, सासादन व मिश्रगुणस्थानमें यह उदयस्थान नहीं है, भोगभूमिज असयतमें बन्ध देवगतियुत २८ प्रकृतिका एवं सत्त्व ९२ व ९० प्रकृतिका है, कर्मभूमिज असंयत व देशसंयतगुणस्थानमें यह उदयस्थान नहीं पाया जाता है। मनुष्योंके उच्छ्वासपर्याप्तिकालमें उच्छ्वासयुत २९ प्रकृतिका उदय रहते हुए मिथ्यादृष्टिके बन्ध एवं सत्त्वसम्बन्धी सर्वकथन तिर्यञ्चवत् जाउना, सासादन व मिश्रगुणस्थानमें यह उदयस्थान नहीं पाया जाता, असंयतगुणस्थानमें बन्ध देवगतियुत २८ एवं देवगति व तीर्थङ्करयुत २९ प्रकृतिका और सत्त्व ९३-९२१.५, व. ९० प्रकृतिला है, देपलंगतादिगुणस्थानों में यह उदयस्थान नहीं है। आहारकशरीरकी भाषापर्याप्तिकालमें सुस्वरसहित २९ प्रकृतिका उदय रहते हुए देवगतियुत २८ व देवगति व तीर्थकरयुत २९ प्रकृतिक बन्धसहित ९३ व ९२ प्रकृतिका सत्त्व होता है। तीर्थंकर के दण्डसमुद्घातमें २९ प्रकृतिक उदयमें बन्धका तो अभाव एवं सत्त्व ८० व ७८ प्रकृतिका है। तीर्थंकररहित सामान्यकेवलीके मूलशरीरमें प्रवेश करते समय उच्च्छ्वालपर्याप्तिकालमें उच्छ्वाससहित २९ प्रकृतिक उदयमें बन्धका अभाव एवं सत्त्व ७९ व ७७ प्रकृतिका है। देवोंकी भाषापर्याप्तिकालमें सुस्वरसहित २९ प्रकृतिक उदय रहते हुए मिथ्यात्वगुणस्थानमें भवनत्रिक एवं कल्पवासिनीदेवियोंके २५-२६-२९ व ३० प्रकृतिक तथा सौधर्मयुगल एवं सहसारस्वर्गपर्यन्त १० स्वर्गोंमें तिर्यञ्च या मनुष्यगतिसंयुक्त २९ और तिर्यञ्चगति व उद्योतयुत ३० प्रकृतिक एवं आनतस्वर्गसे उपरिमौवेयकपर्यन्त मनुष्यगतियुत २९ प्रकृतिक बन्ध है तथा सत्त्व सर्वत्र ९२-९० प्रकृतिका ही है। सासादनगुणस्थानमें भवनत्रिकसे १२वें स्वर्गपर्यन्त तिर्यञ्च या मनुष्यगतिसहित २९ प्रकृतिका व तिर्यञ्च-उद्योत सहित ३० प्रकृतिका तथा नवग्रेवेयकपर्यन्त मनुष्यगतियुत २९ प्रकृतिका ही है तथा सत्त्व सर्वत्र ९० प्रकृतिका है। मिश्रगुणस्थानमें उपरिमनवेयकपर्यन्त सर्वत्र मनुष्यगतियुत २९ प्रकृतिक बन्धसहित सत्त्व ९२ ३ ९० प्रकृतिका है, असंयत्तगुणस्थानमें भवनत्रिक व कल्पवासिनीदेवियोंके २९ प्रकृतिक उदय रहते हुए मनुष्यगतिसहित २९ प्रकृतिक बन्धसहित सत्त्व ९२ व ९० प्रकृतिका है। सौधर्मस्वर्गसे अनुत्तरविमानपर्यन्त २९ प्रकृतिक उदयमें मनुष्यगतियुत २९ एवं मनुष्यगति व तीर्थङ्करयुत ३० प्रकृतिक बन्धसहित सत्त्व ९३-९२-९१ व ९० प्रकृतिका है।
३० प्रकृतिका उदय तिर्यञ्च व मनुष्योंके ही है, क्योंकि यह स्थान संहननसहित है। तिर्यञ्चोंके उच्छ्वासपर्याप्तिकालमें उद्योतसहित ३० प्रकृतिक उदयमें मिथ्यात्व गुणस्थानमें २३-२५-२६-२८-२९ व ३० प्रकृतिक बन्धसहित सत्त्व ९२-९०-८८ व ८४ प्रकृतिका है, सासादन-मिश्रगुणस्थानमें यह उदयस्थान नहीं पाया जाता, भोगभूमिज असंयततिर्यञ्चोंमें ३० प्रकृतिक उदय रहते हुए देवगतियुत २८ प्रकृतिक बन्धसहित सत्त्व ९२ व ९० प्रकृतिका है, कर्मभूमिज असयत व देशसंयतगुणस्थानमें यह उदयस्थान नहीं है। भाषापर्याप्तिकालमें उद्योतरहित और सुस्वर-दुःस्वरमेंसे किसी एक सहित ३० प्रकृति उदय तिर्यञ्चोंके होता है इनके मिथ्यात्वगुणस्थानमें २३-२५-२६-२८-२९ व ३० प्रकृतिक बन्धसहित