Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ६३९
सत्त्व ९२-९०-८८ व ८४ प्रकृतिका है। यहाँ ८८ व ८४ प्रकृतिक सत्त्व विकलत्रयकी अपेक्षासे कहा गया है, क्योंकि विकलत्रय जीवोंके सुरद्विक और नारकचतुष्ककी उद्वेलना होनेके पश्चात् बन्धका अभाव है। सासादनगुणस्थानमें ३० प्रकृतिक उदयमें तिर्यञ्च या मनुष्यगतियुत २९ एवं तिर्यञ्च - उद्योतयुत ३० प्रकृतिक बन्धसहित ९० प्रकृतिका सत्त्व है, मिश्र असंयत व देशसंयतगुणस्थान में देवगतियुत २८ प्रकृतिक बन्ध और ९२ व ९० प्रकृतिका सत्त्व है। मनुष्योंके तीर्थङ्कर समुद्घातावस्था में मूलशरीर में प्रवेश करते समय उच्छ्वासपर्याप्तिकालमें ३० प्रकृतिका उदय है सो यहाँ बन्ध का तो अभाव और सत्त्व ८० व ७८ प्रकृतिका है। तीर्थप्रकृतिबिना भाषापर्याप्तिकालमें सुस्वर या दुःस्वर सहित ३० प्रकृतिका उदय होता है तब बन्धका अभाव और सत्त्व ७९ व ७७ प्रकृतिका जानना । सामान्यमनुष्यके भाषापर्याप्तिकाल में सुस्वर या दुःस्वरसहित ३० प्रकृतिक उदय रहते हुए मिध्यात्वगुणस्थानमें २३-२५२६-२८-२९ व ३० प्रकृतिक बन्धसहित सत्त्व ९२ ९९ व ९० प्रकृतिका है। यहाँ ९१ प्रकृतिक सत्त्व दूसरे व तीसरे नरक जानेके सम्मुख तीर्थङ्करप्रकृतिकी सत्तावाले जीवकी अपेक्षासे कहां है। सासादनगुणस्थानमें ३० प्रकृतिक उदयमें तिर्यञ्च व मनुष्यगतियुत २९ तथा तिर्यञ्च - उद्योतसहित ३० प्रकृतिका बन्ध एवं ९० प्रकृतिका सत्त्व पाया जाता है, मिश्र में बंध देवसहित २८ और सत्त्व ९२-९० प्रकृतिका है, असंयतसे अपूर्वकरणगुणस्थानके छठेभागपर्यन्त देवगतियुत २८ एवं देवगति व तीर्थङ्करयुत २९ प्रकृतिक बन्धसहित ९३ ९२ ९९ व ९० प्रकृतिक सत्त्व है, अप्रमत्त और अपूर्वकरण के छठे भाग पर्यन्त देव और आहारक सहित ३० का तथा देव, आहारक, तीर्थंकर सहित ३१ का भी बन्ध होता है, अपूर्वकरणगुणस्थानके सप्तमभागमें बंध १ प्रकृतिका एवं सत्त्व ९३ ९२-९१-९० प्रकृतिरूप है, अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानमें बन्ध एक प्रकृतिका और सत्त्व ९३-९२-९१ व ९० तथा ८०-७९-७८ व ७७ प्रकृतिका जानना। आगे उपशान्तकषायादि चार गुणस्थानोंमें बन्धका अभाव है अतः ३० प्रकृतिक उदय रहते हुए चारोंगुणस्थानोंमें क्रमले उपशान्तकषायगुणस्थानमें ९३-९२-९१ व ९०, क्षीणकषाय व सयोगकेवली गुणस्थानमें ८०-७९-७८ व ७७ प्रकृतिका सत्त्व जानना, अयोगकेवलीगुणस्थानमें ३० प्रकृतिक उदय नहीं पाया जाता ।
३१ प्रकृतिक उदय त्रस - उद्योतसहित भाषापर्याप्तिकालमें सुस्वर या दुःस्वरयुत तिर्यञ्चोंके होता है। जिसप्रकार ऊपर उद्योतरहित तिर्यञ्चोंके ३० प्रकृतिरूप उदयमें भाषापर्यातिकालमें बन्ध-सत्त्वका कथन किया है उसीप्रकार यहाँ भी जानना | मनुष्यों में मिथ्यात्वसे क्षीणकषायगुणस्थानपर्यन्त ३१ प्रकृतिका उदय ही नहीं पाया जाता है, किन्तु सयोगीगुणस्थानमें तीर्थङ्करके इसका उदय है सो यहाँ बन्धका तो अभाव और सत्त्व ८० व ७८ प्रकृतिका है । ९ प्रकृतिक उदय अयोगीगुणस्थानमें तीर्थङ्करके पाया जाता है यहाँ बन्धका तो अभाव और सत्त्व ८०-७८ व १० प्रकृतिका है तथा सामान्यकेवली की अपेक्षा अयोगी गुणस्थान में ही ८ प्रकृतिका उदय भी होता है तब बन्धका अभाव एवं सत्त्व ७९ ७७ व ९ प्रकृतिका है।