Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६३३
अर्थ – २० प्रकृतिक उदयस्थानमें बन्धका अभाव है, सत्त्व ७९ व ७७ प्रकृतिरूप दो हैं, २१ प्रकृतिक उदयस्थानमें २३ प्रकृतिक स्थानसे ३० प्रकृतिकस्थानपर्यन्त ६ बन्धस्थान हैं तथा सत्त्वस्थान ९३ से ८० प्रकृतिक स्थानपर्यन्त एवं ७८ प्रकृतिका ऐसे ९ हैं। यहाँ २१ प्रकृतिक उदयस्थानके अन्तर्गत तीर्थकरसमुद्घातकेवलीके बन्धस्थानका अभाव भी है। २४ प्रकृतिक उदयस्थानमें आदिके तीन और २९ व ३० प्रकृतिक इस प्रकार पाँच बन्धस्थान हैं एवं सत्त्वस्थान ९२ प्रकृतिक व ९० आदि प्रकृतिरूप चार इसप्रकार पाँच जानना। २५-२६-२७-२८ व २९ प्रकृतिक उदयस्थानोंमें २३ आदि प्रकृतिरूप ६ उदयस्थान एवं सत्त्वस्थान क्रमसे २५ प्रकृतिक स्थानमें आदिके सात, २६ प्रकृतिकस्थानमें आदिके ७
और ७९ व ७७ प्रकृतिरूप दो ऐसे ९, २७ प्रकृतिकस्थानमें आदिके ६ और ८० व ७८ प्रकृतिक ऐसे ८, २८ प्रकृतिकस्थानमें आदिके ६ तथा ७९ व ७७ प्रकृतिक दो इसप्रकार आठ हैं, २९ प्रकृतिक स्थानमें आदिके छह और ८० आदि प्रकृतिरूप चार ऐसे १०, तीसप्रकृतिक उदयस्थानमें बन्धस्थान ८ एवं सत्त्व २९ प्रकृतिकस्थानके समान १० हैं। ३१ प्रकृतिक उदयस्थानमें बन्ध २३ से ३० प्रकृतिक स्थानपर्यन्त ६ व सत्त्वस्थान ९२ प्रकृतिरूप व ९० आदिप्रकृतिरूप ३ और ८०-७८ प्रकृतिक ऐसे ६ हैं। ९ व ८ प्रकृतिक उदयस्थानमें बन्धस्थानका अभाव है तथा ८० आदि प्रकृतिरूप ६ स्थानोंमेंसे समसंख्यारूप तीनस्थान ९ प्रकृतिक स्थानमें और विषमसंख्यारूप तीनस्थान आठप्रकृतिक स्थानमें जानना चाहिए |
विशेषार्थ - २० प्रकृतिका उदय तीर्थङ्कारहित सामान्यकेवलीके समुद्घातमें होता है, यहाँ बन्धका अभाव है और सत्त्व ७९ व ७७ प्रकृतिके पाए जाते हैं। २१ प्रकृतिरूप उदयस्थान तीर्थङ्करके प्रतर समुद्घात करने व समेटनेमें और लोकपूरण समुद्घातमें होता है। यहाँ भी बन्ध नहीं पाया जाता, सत्त्व ८० व ७८ प्रकृतिरूप है तथा आनुपूर्वीसहित २१ प्रकृतिका उदय चारोंगतिके विग्रहगतिकालमें होता है। मिथ्यात्वगुणस्थानवर्ती धर्मादि तीन पृथ्वियोंके नारकीजीवोंमें २१ प्रकृतिक उदयस्थानमें पंचेन्द्रियतिर्यंच या मनुष्ययुत २९ अथवा तिर्यञ्च-उद्योतसहित ३० प्रकृतिक बन्धसहित सत्त्व ९२-९१ व ९० प्रकृतिका है। सासादन व मिश्रगुणस्थानमें २१ प्रकृतिरूप उदयस्थान नहीं है, असंयतगुणस्थानमें धर्मानरकमें ही २१ प्रकृतिका उदय है यहाँ मनुष्ययुत २९ व तीर्थकरयुत ३० प्रकृतिका बंध और ९२-९१ व ९० प्रकृतिका सत्त्व है। अञ्जनादि तीन नरकोंमें मिथ्यादृष्टिनारकियोंके २१ प्रकृतिक उदयमें बन्ध पंचेन्द्रियतिर्यच या मनुष्ययुत २९ और तिर्यञ्च-उद्योतसहित ३० प्रकृतिक बन्धप्सहित सत्त्व ९२ व ९० प्रकृतिका है। अञ्जनादिपृथ्वियोंके सासादनआदि तीनगुणस्थानमें २१ प्रकृतिक उदय नहीं है। तिर्यंचोंके मिथ्यात्वगुणस्थानमें २१ प्रकृतिक उदयमें २३-२५-२६-२९ व ३० प्रकृतिरूप बन्धसहित सत्त्व ९२. ९०-८८-८४ व ८२ प्रकृतिका है, सासादनगुणस्थानमें २१ प्रकृतिक उदयमें पंचेन्द्रियतिर्यंच व मनुष्ययुत २९ एवं तिर्यंच-उद्योतसहित ३० प्रकृतिक बंधके साथ सत्त्व ९० प्रकृतिका है। यहाँ मिश्च व देशसंयतगुणस्थानमें २१ प्रकृतिक उदय नहीं है। असंयतगुणस्थानमें २१ प्रकृतिक उदयमें देवयुत २८ प्रकृतिक बंधसहित सत्त्व ९२ व ९० प्रकृति का है। मनुष्योंके मिथ्यात्वगुणस्थानमें २१ प्रकृतिक उदयमें