Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६३४
२३-२५-२६-२९ व ३० प्रकृतिरूप बंधसहित सत्त्व ९२-९०-८८ व ८४ प्रकृतिका है। सासादनगुणस्थानमें २१ प्रकृतिक उदयमें पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च व मनुष्ययुत २९ और तिर्यञ्च-उद्योतसहित ३० प्रकृति बन्धसहित सत्त्व ९० प्रकृति का है, मिश्रगुणस्थानमें २१ प्रकृति का उदय नहीं है, असंयतगुणस्थानमें २१ प्रकृतिक उदयमें देवयुत २८ प्रकृतिक और देव-तीर्थङ्करयुत २९ प्रकृतिक बन्धसहित सत्त्व ९३-९२-९१ व ९० प्रकृतिका, देशसंयतादिमें २१ प्रकृतिक उदय नहीं है । देवर्गातमें भवनत्रिकदेवों में
और कल्पवासिनी देवियोंके मिथ्यात्वगुणस्थानमें २१ प्रकृतिक उदयमें २५-२६-२९ व ३० प्रकृतिक बन्धसहित सत्त्व ९२ व ९० प्रकृति का है, सासादनगुणस्थानमें २१ प्रकृतिक उदय में मनुष्ययुत २९ व तिर्यञ्च-उद्योतयुत ३० प्रकृतिक बन्धसहित ९० प्रकृति का है। मिश्र-भसंयतगुणस्थानमें इसप्रकारका उदयस्थान नहीं है। सौधर्मयुगलके मिथ्यात्वगुणस्थानमें २१ प्रकृतिक उदयमें २५-२६-२९ व ३० प्रकृतिक बन्धसहित सत्त्व ९२ व ९० प्रकृति का है, सासादनगुणस्थानमें २१ प्रकृतिक उदय में तिर्यञ्च व मनुष्ययुत २९ और तिर्यञ्च-उद्योतयुत ३० प्रकृतिरूप बन्धसहित सत्त्व ९० प्रकृति का है। मिश्रगुणस्थानमें यहाँ २१ प्रकृतिक उदयस्थान नहीं है। असंयतगुणस्थानके २१ प्रकृतिक उदयमें मनुष्ययुत २९ और मनुष्य-तीर्थङ्करयुत ३० प्रकृति के बन्धसहित सत्त्व ९३-९२-९१ व ९० प्रकृतिका जानना । आगे सहस्रारस्वर्गपर्यन्त १० स्वर्गोमें मिथ्यात्वगुणस्थानके २१ प्रकृतिरूप स्थानका उदय है तब तिर्यञ्च व मनुष्ययुत २९ एवं तिर्यञ्च-उद्योतयुत ३० प्रकृतिक बन्धके साथ ९२ व ९० प्रकृतिका सत्त्व पाया जाता है तथा सासादन व असंयतगुणस्थानसम्बन्धी कथन पूर्वोक्त सौधर्मयुगलके कथनवत् जानना । मिश्रगुणस्थानमें २१ प्रकृतिक उदय नहीं पाया जाता है। आनतस्वर्गसे उपरिमग्रैवेयकपर्यन्त २१ प्रकृतिक उदयमें मिथ्यात्वगुणस्थानमें बन्ध मनुष्ययुत २९ और सत्त्व ९२ व ९० प्रकृतिका है, सासादनगुणस्थानमें मनुष्ययुत २९ प्रकृतिके बन्धसहित ९० प्रकृतिका सत्त्व है, मिश्रगुणस्थानमें २१ प्रकृतिक उदयस्थानका अभाव है, असंयतगुणस्थानमें मनुष्ययुत २९ एवं मनुष्य-तीर्थकरयुत ३० प्रकृतिक बन्धके साथ ९३९२-९१ व ९० प्रकृतिक सत्त्व पाया जाता है। नवानुदिश और पाँच अनुत्तर विमानसम्बन्धी असंयतगुणस्थानमें भी मनुष्यगतियुत २९ प्रकृतिक तथा मनुष्य-तीर्थङ्करयुत ३० प्रकृतिक बन्धसहित ९३ आदि प्रकृतिरूप चार सत्त्वस्थान हैं।
२४ प्रकृतिरूए उदयस्थान अपर्याप्तएकेन्द्रियमिथ्यादृष्टिजीव के ही है। यहाँ २४ प्रकृतिक उदयमें लब्ध्यपर्याप्तकके २३-२५-२६-२९ व ३० प्रकृतिक बंधसहित सत्त्व ९२-९०-८८-८४ ३ ८२ प्रकृतिका है तथा निर्वृन्यपर्याप्तकमें भी सर्वकथन इसीप्रकार है, किन्तु विशेषता यह है कि अग्निकाय वायुकायके जीवोंमें मनुष्यगतिसहित होनेवाले सभी बन्धस्थानोंका अभाव है। एवं आतप-उद्योतसहित सर्व सूक्ष्म, अपर्याप्त, तेजकाय-वायुकाय और साधारणका बन्ध नहीं है। २५ प्रकृति का उदय चारोंगतिके अपर्याप्तकालमें और पर्याप्तएकेन्द्रियके सम्भव है यहाँ २५ प्रकृतिका उदय रहते हुए सभी कारकियोंक मिथ्यात्वगुणस्थानमें तथा धर्मानरकके असंयतगुणस्थानमें २१ प्रकृतिक उदयस्थानवत् बन्ध व सत्त्व