Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ६३२
आगे उदयस्थानको आधार और बन्ध-सत्त्वस्थानोंको आधेय मानकर कथन करते हैं
बीसादिसु बंधंसा णभदु छण्णव पणपणं च छसत्तं । छण्णव छड दुसु छहस अट्ठदसं छकछक्क णभति दुसु ||७४६ ||
अर्थ - २० आदि प्रकृतिरूप उदयस्थानोंमें बन्ध व सत्त्वस्थान क्रमसे २० प्रकृतिके उदयस्थानमें बन्धस्थान शून्य व सत्त्वस्थान २ २१ प्रकृतिक उदयस्थानमें बन्धस्थान ६ व सत्त्वस्थान ९, २४ प्रकृतिक उदयस्थानमें बन्धस्थान ५ और सत्त्वस्थान ५, २५ प्रकृतिक उदयस्थानमें बन्धस्थान ६ सत्त्वस्थान ७, २६ प्रकृतिक उदयस्थानमें बन्धस्थान ६ और सत्त्वस्थान ९, २७ व २८ प्रकृतिक उदयस्थानमें बन्धस्थान ६ एवं सत्त्वस्थान ८ २९ प्रकृतिक उदयस्थानमें बन्धस्थान ६ तथा सत्त्वस्थान १०, तीस प्रकृतिक उदयस्थानमें बन्ध व सत्त्वस्थान क्रमसे ८ व १० हैं, ३१ प्रकृतिरूप उदयस्थानमें बन्ध और सत्त्वस्थान ६ व ६ हैं तथा ९ व ८ प्रकृतिक उदयस्थानोंमें बन्धस्थानका अभाव है और सत्त्वस्थान ३ जानना ।
अब उपर्युक्त कथन का स्पष्टीकरण ६ गाथाओं में करते हैं
बीसुदये बंधो ण हि उणसीदीसत्तसत्तरी सत्तं । इगिवीसे तेवीसप्पहुदीती संतया बंधा || ७४७ ।। सत्तं तिणउदिपहुदिसीदंता अट्ठसत्तरी य हवे । चवीसे पढमतियं णववीसं तीसयं बंधो ॥ ७४८ ॥ बाणउदी उदिचऊ सत्तं पणछस्सगट्टणववीसे । बंधा आदिमछकं पढमिल्लं सत्तयं सन्तं ॥ ७४९ ॥ ते गवसगसदरिजुदा आदिमछस्सीदिअट्ठसदरीहिं । णवसत्तसत्तरीहिं सीदिचउक्केहिं सहिदाणि ।। ७५० ॥ तीसे अट्ठवि बंधो ऊणतीसं व होदि सत्तं तु । इगितीसे तेवीसप्पहूदीतीसंतयं बंधो ।। ७५१ ।। सत्तं दुणउदिणउदीतिय सीदडहत्तरी य णवगडे । बंधो ण सीदिपहुदीसुसमविसमं सत्तमुद्धिं ॥ ७५२ ।।