Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६२६
है तब उदय २१-२४-२५-२६-२७-२८-२९-३० व ३१ प्रकृतिका और सत्त्व ९२-९७-८८-८४ व ८२ प्रकृतिका है। मनुष्योंमें भी इसीप्रकार २६ प्रकृतिका बन्ध होनेपर उदय २१-२६-२८-२९ व ३० प्रकृतिका एवं सत्त्व ९२-९०-८८ और ८४ प्रकृतिका जानना । भवत्रिक व सौधर्मद्विक स्वर्गके देवोंमें इसीप्रकार २६ प्रकृतिका बन्ध होनेपर उदय २१-२५-२७-२८ व २९ प्रकृतिक स्थानों का एवं सत्त्व ९२ व ९० प्रकृतिक दोस्थानोंका है। तथैव २८ प्रकृतिका बन्ध नरक या देवगतियुत है, इसका बन्ध असञ्ज्ञी व सञी तियञ्च और मनुष्य मिथ्यादृष्टि पर्याप्तकाल में करते हैं। तिर्यञ्चोंके मिथ्यात्वावस्थामें नरक या देवगतियुत २८ प्रकृतिका बन्ध होता है तब उदय २८-२९-३० व ३१ प्रकृतिका है और सत्त्व ९२-९०८८ प्रकृतिका है। सासादनमें देवयुत २८ प्रकृतिका बन्ध होनेपर ३० व ३१ प्रकृतिका उदय एवं सत्त्व ९० प्रकृतिका है। सम्यग्मिध्यात्वगुणस्थानमें २८ प्रकृतिका बन्ध देवगतियुत ही है उस समय उदय ३० व ३१ प्रकृतिका सत्त्व ९२ व ९० प्रकृतिका। असंयतगुणस्थानमें देवयुत बन्ध २८ प्रकृतिका होता है तो उदय २१-२६-२८-२९-३० व ३१ प्रकृतिका और सत्त्व ९२-९० प्रकृतिका है। देशसंयतगुणस्थानमें देवगतियुत २८ प्रकृति के बन्धमें ३० व ३१ प्रकृतिका उदय एवं सत्त्व ९२ व ९० प्रकृतिका है। ८२ प्रकृतिके सत्त्वसहित तेजकाय-वायुकायवाले मरणकरके तिर्यञ्चोंमें उत्पन्न होते हैं उनके विग्रहगतिमें या अपर्याप्तकालमें तिर्यञ्चयुत २३-२५-२६-२९ व ३० प्रकृतिका बन्ध होता है। ८२ प्रकृतिका सत्त्व होता है मनुष्यद्विकसहित २५ व २९ प्रकृतिका बन्ध होते हुए ८२ प्रकृतिका सत्त्व नहीं होता है। एकेन्द्रियविकलेन्द्रियजीव नारकचतुष्ककी उद्वेलना होनेपर मरणकर पञ्चेन्द्रियपर्याप्त तिर्यञ्चोंमें भी उत्पन्न होते हैं उनके भी पूर्वोक्त अपर्याप्तकालमें ८४ प्रकृतिका सत्त्व सम्भव है इसलिए २८ प्रकृतिके बन्ध होनेके काल में ८२ व ८४ प्रकृतिका सत्त्व नहीं कहा। मिथ्यादृष्टिमनुष्यके पर्याप्तकालमें नरक या देवसहित २८ प्रकृतिका बन्ध होता है तब उदय २८-२९ व ३० प्रकृतिका एवं सत्त्व ९२-९१-९० व ८८ प्रकृतिका है। शरीरपर्याप्ति पूर्ण होनेपर नारकचतुष्क व देवचतुष्कका बध होता है तो ८८ प्रकृतिका भी सत्त्व पाया जाता है। जिसने पहले नरकायुका बन्ध कर लिया हो ऐसा असंयत द्वितीय-तृतीय पृथ्वीमें गमनके सम्मुख है वह मिथ्यादृष्टि होकर नरकगतिसहित २८ प्रकृतिका बन्ध करता है तो उदय ३० प्रकृतिका व सत्त्व ९१ प्रकृतिका है। मनुष्यके सासादनगुणस्थानमें देवगतिसहित २८ प्रकृतिका बन्ध है तो उदय ३० प्रकृतिका और सत्त्व ९० प्रकृतिका है। मिश्रगुणस्थानमें देवयुत बन्ध २८ प्रकृति होते हुए उदय ३० एवं सत्त्व ९२ व ९० प्रकृतिका पाया जाता है। असंयतगुणस्थानके देवयुत २८ प्रकृतिके बन्धमें उदय २१२६-२८-२९ व ३० प्रकृतिका है एवं सत्त्व ९० व ९२ प्रकृतिका है, यहाँ ९१ प्रकृतिका सत्त्व नहीं है, क्योंकि पहले यदि नरकायुका बन्ध नहीं हुआ है तो तीर्थरप्रकृतिका बन्ध प्रारम्भ होनेके बाद सम्यक्त्वसे भ्रष्ट नहीं हो सकते, तीर्थङ्करप्रकृतिका बन्ध निरन्तर है इसलिए देवगति व तीर्थङ्करसहित २९ प्रकृति का बन्ध होता है २८ प्रकृतिका नहीं। देशसंयतके २८ प्रकृतिकबन्धमें उदय ३० एवं सत्त्व ९२ व ९० प्रकृतिका पाया जाता है, प्रमत्तगुणस्थानमें देवयुत २८ प्रकृतिरूप बन्धमें २५-२७-२८-२९ व ३०