Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ६२४
चारु सुदंसणधरणे कुवलयसंतोसणे समत्थेण । माधवचंदेण महावीरेणत्थेण वित्थरिदो ॥७३९ ।।
अर्थ - उत्कृष्ट सम्यग्दर्शन धारण करनेमें समर्थ तथा पृथ्वीमण्डलको आनन्द करनेवाले श्री माधवचन्द्र अर्थात् नेमिनाथ तीर्थकर और महावीर तीर्थङ्कर परमार्थसे पूर्वोक्त कथनका विस्तार किया है अथवा माधवचन्द्र और वीरनन्दी आचार्योंने किया ऐसा भी अर्थ निकलता है।
आगे उपर्युक्त त्रिसंयोगमें एकको आधार और दो को आधेय मानकर कथन करेंगे सो उसमें यहाँ सर्वप्रथम बन्ध को आधार और उदय सत्त्व को आधेय मानकर दो गाथाओं में कहते हैं
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णवपंचोदयसत्ता तेवीसे पण्णुवीस छव्वीसे । अचदुरबीसे णवसत्तुगुतीसतीसम्मि ||७४० ॥
एगेगं इगितीसे एगे एगुदयमसत्ताणि ।
उवरदबंधे दस दस उदयंसा होंति नियमेण ||७४१ ॥ जुम्मं ।। '
अर्थ - २३-२५ व २६ प्रकृतिक बन्धस्थानमें उदयस्थान ९ तथा सत्त्वस्थान पाँच हैं, २८ प्रकृतिक बन्धस्थानमें उदयस्थान ८ और सत्त्वस्थान चार हैं । २९ व ३० प्रकृतिक बन्धस्थानमें उदयस्थान ९ एवं सत्त्वस्थान सात हैं, ३१ प्रकृतिक बन्धस्थानमें उदय सत्त्वस्थान एक-एक ही हैं तथा एक प्रकृतिक बन्धस्थानमें उदयस्थान एक एवं सत्त्वस्थान ८ हैं । उपरतबन्ध अर्थात् बन्धरहित स्थानमें उदय व सत्त्वस्थान १०-१० हैं, ऐसा नियमसे जानना ।
अब नामकर्मके उपर्युक्त स्थानोंमें प्रकृतिसंख्या कहते हैं
तियपणछबीसबंधे इगिवीसादेक्कतीसचरिमुदया । बाणउदी णउदिचऊ सत्तं अडवीसगे उदया || ७४२ ।। पुव्वंव ण चडवीसं बाणउदि चउक्वसत्तमुगुतीसे । तीसे पुव्वं उदया पढमिल्लं सत्यं सन्तं || ७४३ ॥
१. एगेगं इगिती से एगेगुदयह संतमि । उवयबंधे चउदस वेदयदि संतठाणाणि ।। २४९ ।। (प्रा. पं.सं. पू. ४०४ ) )