Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ६२५
इगितीसे तीसुदओ तेणउदी सत्तयं हवे एगे । तीसुदओ पढमचऊ सीदादि चउक्क मवि सत्तं ।। ७४४ ।।
उवरदबंधेसुदयाची
सवयं होदितः
सत्तं पदमच सीदादीछक्कमवि होदि ||७४५ ।।
अर्थ - २३-२५ व २६ प्रकृतिके बन्धस्थानोंमें २१ से ३५ प्रकृतिक स्थानपर्यंत ९ उदयस्थान और ९२ प्रकृतिक तथा १० आदि प्रकृतिरूप चार ऐसे पाँच सत्त्वस्थान हैं । २८ प्रकृतिक बन्धस्थानमें उदयस्थान तो उपर्युक्त ९ में २४ प्रकृतिक स्थानबिना शेष ८, सत्त्वस्थान ९२ आदि प्रकृतिरूप चार हैं। २९ व ३० प्रकृतिक बन्धस्थानमें उदयस्थान उपर्युक्त ९ हैं और सत्त्वस्थान ९३ आदि प्रकृतिरूप सात हैं । ३१ प्रकृतिक बन्धस्थानमें उदयस्थान ३० प्रकृतिक एवं सत्त्वस्थान ९३ प्रकृतिक है। १ प्रकृतिरूप बन्धस्थानमें उदयस्थान ३० प्रकृतिक और सत्त्वस्थान ९३ आदि प्रकृतिरूप चार व ८० आदि प्रकृतिरूप चार ऐसे आठ हैं । बन्धरहित ( उपरतबन्धमें) उदयस्थान २४-२५ प्रकृतिकबिना शेष १० हैं और सत्त्वस्थानभी ९३ आदि प्रकृतिरूप ४ व ८० आदि प्रकृतिरूप ६ ऐसे १० हैं ।
विशेषार्थ बन्ध - उदय - सत्त्वरूप त्रिसंयोगमें २३ प्रकृतिक बन्धस्थानमें उदयस्थान ९ और सत्त्वस्थान ५ हैं, क्योंकि २३ प्रकृतिका बन्ध एकेन्द्रिय अपर्याप्तसहित है अतः इस स्थानको देव नारकीके बिना अन्य मिध्यादृष्टि त्रस स्थावरतिर्यञ्च व मनुष्य ही बाँधते हैं। एकेन्द्रियादि सर्व तिर्यञ्चोके बन्ध एकेन्द्रिय अपर्याप्तसहित २३ प्रकृतिका है तब उदय २१-२४ २५ २६ २७ २८ २९ ३० व ३१ प्रकृतिका तथा सत्त्व ९२-९०-८८-८४ व ८२ प्रकृतिका है और कर्मभूमिज मनुष्यके एकेन्द्रिय अपर्याप्तयुत २३ प्रकृतिका बन्ध होता है तब उदय २१-२६-२८- २९ व ३० प्रकृतिका एवं सत्त्व ९२-९०-८८ व ८४ प्रकृतिका पाया जाता है । २५ प्रकृतिक बन्धस्थानको एकेन्द्रियपर्याप्त और त्रस अपर्याप्तसहित मिध्यादृष्टि तिर्यञ्च मनुष्य और देव ही बाँधते हैं। सभी तिर्यञ्चोंके एकेन्द्रिय पर्याप्त व त्रस अपर्याप्तयुत २५ प्रकृतिका बन्ध है तब उदय २१-२४-२५-२६-२७-२८ २९ ३० व ३१ प्रकृतिका है और सत्त्व १२९०-८८-८४ व ८२ प्रकृतिका है, मनुष्योंके भी इसीप्रकार २५ प्रकृतिक बन्धमें उदय २१-२६-२८२९ व ३० प्रकृतिका एवं सत्त्व ९२-९० ८८ व ८४ प्रकृतिका है। भवनत्रिक-सौधर्मद्विक देवोंमें एकेन्द्रियपर्याप्तियुत २५ प्रकृतिका बन्ध रहते हुए उदय २१-२५-२७-२८ व २९ प्रकृतिका तथा सत्त्व ९२ व ९० प्रकृतिका है ।
२६ प्रकृतिक बन्धस्थान एकेन्द्रियपर्याप्तजीव उद्योत या आतपसहित मिथ्यादृष्टि देव, मनुष्य और तिर्यञ्च ही बाँधते हैं, इनमें भी तेजकाय वायुकाय, साधारण, सूक्ष्म व अपर्याप्त २६ प्रकृतिक स्थानका उदय नहीं है तथा तिर्यञ्चोंके एकेन्द्रियपर्याप्त उद्योत व आतपसहित २६ प्रकृतिका बन्ध होता