Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ६१२
कायमार्गणा में बन्ध - उदय और सत्त्वस्थानसम्बन्धी संदृष्टि
कायमार्गणा बन्ध
स्थान
संख्या
पृथ्वी आदि
पाँच स्थावर
काय
त्रसकाय
५.
८
बन्धस्थानगत
प्रकृति - संख्या
का विवरण
२३-२५-२६-२९ व ३० प्रकृतिक
२३-२५-२६-२८| २९-३०-३१ त्र १ प्रकृतिक
उदय
स्थान
संख्या
५
१४
उदयस्थानगत
प्रकृति-संख्या
का विवरण
२१-२४-२५-२६
२७ प्रकृतिक तेजकाथ- वायुकायमें
२५ प्रकृतिक
उदयस्थान नहीं है।
२०-२१-२५२६-२७-२८
२९-३०-३१-९
व ८ प्रकृतिक
अब योगमार्गणा में बन्ध- उदर व सत्त्वस्थान कहते हैं
सत्त्व- सत्त्वस्थानगत प्रकृति
स्थान संख्याका विवरण
संख्या
५
१२-९०-८८-८४ व ८२ प्रकृतिक
१३ ९३-९२-११-९०
| ८८-८४-८२-८०
७९ ७८ व ७७, १७९ प्रकृतिक
मणिवच बंधुदयंसा सव्वं णववीसतीसइगितीसं । दसणवदुसीदिवज्जिदसव्वं ओरालतम्मिस्से । ७१८ ॥
अर्थ - योगमार्गणा मन वचन और कायरूप प्रत्येक योगमें बन्धस्थान सर्व, उदयस्थान २९
३० व ३१ प्रकृतिक तीन एवं सत्त्वस्थान १० ९ व ८२ प्रकृतिकबिना शेष सभी हैं ।
आगे उपर्युक्त कथन का स्पष्टीकरण तीन गाथाओं से करते हैं-
सव्वं तिवीसछकं पणुवीसादेक्कतीसपेरंतं । चउछकसत्तवीसं दुसु सव्वं दसयणवहीणं ।।७१९ ॥ वेब्वे तम्मिस्से बंधंसा सुरगदीव उदयो दु । सगवीसतियं पणजुदवीसं आहारतम्मिस्से ||७२० ।। बंधतियं अडवीस वेगुब्वं वा तिणउदिबाणउदी । कम्मे वीसदुगुदओ ओरालियमिस्सयं व बंधंसा ।। ७२१ ।।