Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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मार्गणा
अर्थ - भव्यमार्गणामें बन्ध - उदय व सत्त्वस्थान सभी हैं। अभव्यमार्गणामें बन्धउदयस्थान तो असंयमवत् जानना तथा सत्त्वस्थान ९० आदि ४ हैं, किन्तु अभव्यके उद्योतसहित ३० प्रकृतिक स्थान तो है; आहारकद्वि ३० कृबिस्थान नहीं है। "दमिवुवसमे” इन वचनों में उपशमसम्यक्त्वसम्बन्धी जो कथन किया गया है वह सम्यक्त्वमार्गणासे जानना चाहिये ।
भव्यमार्गणा में बन्ध - उदय-सत्त्वस्थानसम्बन्धी सन्दृष्टि
भव्य
गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ६२०
आगे भव्यमार्गणा में बन्ध-उदय-सत्त्वस्थान कहते हैं
अभव्य
बन्ध
स्थान
संख्या
८
भव्वे सव्वमभव्वे बंधुदया अविरदव्व सत्तं तु । णउदिचउ हारबंधणदुगहीणं सुदमिवुवसमे बंधो ।।७३२ ।।
६
बन्धस्थानगत
प्रकृति - संख्या
का विवरण
२३-२५-२६
- २८-२९-३०
३१ व १
२३-२५-२६
२८-२९ व ३० प्रकृतिक
यहाँ ३० प्रकृतिक स्थान उद्योतसहित
ही है।
उदय
स्थान
संख्या
१२
उदयस्थानगत
प्रकृति संख्या का स्थान
विवरण
संख्या
२०-२१-२४
२५-२६-२७
२८-२९-३०-३१९ व ८ प्रकृतिक
२१-२४-२५
२६-२७-२८
२९-३० व ३१ प्रकृतिक
सत्त्व
सत्त्वस्थानगत प्रकृतिसंख्या का विवरण
१३ ९३९२-९१-९०
८८-८४-८२-८०
७९-७८ व ७७
प्रकृतिक तथा १०,९
९०-८८-८४ व ८२ प्रकृतिक
अब सम्यक्त्वमार्गणा में बन्ध-उदय व सत्त्वस्थान कहते हैं
. सुदमिवुवसमे बंधो ॥७३२ ।।
उदया इगिपणवीसं णववीसतियं च पढमचउ सत्तं । उवसम इव बंधंसा वेदगसम्मे ण इगिबंधो ।।७३३ ।।