Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६१६
ज्ञानमार्गणा में बन्ध-उदय-सत्त्वस्थानसम्बन्धी सन्दृष्टि--
बन्धस्थानगत उदय-] उदयस्थानगत - । सत्त्व- | सत्त्वस्थानगत प्रकृतिस्थान प्रकृति-संख्या | स्थान | प्रकृति संख्या का स्थान | संख्या का विवरण संख्या का विवरण
विवरण
ज्ञानमार्गणा
बन्ध
सख्या
संख्या
६ । ९२-९१-९०-८८
८४ व ८२ प्रकृतिक
कुमति
२३-२५-२६- | ९ | २१-२४-२५-२६- २८-२९
२७-२८-२९कुश्रुत
व ३० प्रकृतिक | | ३० व ३१ प्रकृतिक विभङ्ग
२९-३० व
३१ प्रकृतिक मति- ५ | २८-२९-३०-३१/ ८ | २१-२५-२६-२७- श्रुतअवधि |
२८-२९-३० व ३१
९२-९१ व ९० प्र.
८ |
९३-१२-९१-९०८०-७९-७८ व ७७ प्रकृतिक
,
मन:पर्यय । ५ केवलज्ञान
१
३० प्रकृतिक ८ २०-२१-२६-२७- | ६ | २८-२९-३०-३१
९७८
८०-७९-७८-७७१० व १ प्रकृतिक
आगे संयममार्गणा में बन्ध-उदय व सस्वस्थानसम्बन्धी कथन करते हैं
सुदमिव सामायियदुगे उदओ पणुवीससत्तवीसचऊ ॥७२६ ।। अर्थ – संयममार्गणाके सामायिक-छेदोपस्थापनासंयममें बन्ध और सत्त्वस्थान तो श्रुतज्ञानवत् हैं एवं उदयस्थान २५ प्रकृतिक एक व २७ आदि प्रकृतिरूप चार इसप्रकार पाँच हैं।
परिहारे बंधतियं अडवीसचऊ य तीसमादिचऊ।
सुहुमे एक्को बंधो मणं व उदयंसठाणाणि ॥७२७ ॥ अर्थ -- परिहारविशुद्धिसंयममें बन्धस्थान २८ आदि प्रकृतिरूप चार हैं, उदयस्थान ३० प्रकृतिरूप एक ही है तथा सत्त्वस्थान ९३ आदि प्रकृतिरूप चार हैं। सूक्ष्मसाम्परायसंयममें बन्धस्थान एक प्रकृतिरूप और उदय और सत्त्वस्थान मन:पर्ययज्ञानवत् जानना।