Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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____ गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६१७ । जहखादे बंधतियं केवलयं वा तिणउदिचउ अस्थि ।
देसे अडवीसदुगं तीसदु तेणउदिचारि बंधतियं ॥७२८॥ अर्थ – यथाख्यातसंयममें बन्ध-उदय और सत्त्वस्थान केवलज्ञानवत् हैं, किन्तु विशेषता यह है कि सत्त्वस्थान ९३ आदि प्रकृतिरूप चार भी पाया जाता है। देशसंयममें २८ आदि प्रकृतिरूप दो, उदयस्थान ३० आदि प्रकृतिरूप दो तथा ९३ को आदि लेकर चारसत्त्वस्थान हैं।
अविरमणे बंधुदया कुमदिं व तिणउदिसत्तयं सत्तं । ___ अर्थ - असंयममें बन्ध और उदयस्थान कुमतिज्ञानवत् हैं तथा सत्वस्थान ९३ आदि प्रकृतिरूप
संयममार्गणा में बन्ध-उदय-सत्त्वस्थानसम्बन्धी सन्दृष्टिसंयम- बन्ध- बन्धस्थानगत उदय-| उदयस्थानगत सत्त्व- | सत्वस्थानगत प्रकृतिमार्गणा स्थान प्रकृति-संख्या | स्थान | प्रकृति संख्या का | स्थान | संख्या का विवरण
संख्या का विवरण संख्या विवरण | सख्या
९३-९२-९१-९०८०-७९-७८ व ७७
९३-९२-९१ व ९०
सामायिक
२८-२९- | ५ । २५-२७-२८
३०-३१ व | २९ व ३० प्रकृतिक | छेदोपस्थापना १ प्रकृतिक परिहार२८-२९
३० प्रकृतिक विशुद्धि
३० व ३१ सूक्ष्म१ प्रकृतिक
३० प्रकृतिक साम्पराय यथाख्यात । ० |
१० |२०-२१-२६-२७-| १० |२८-२९-३०-३१
९ व ८ प्रकृतिक देशसंयम |२ २८ व २९ प्रकृतिक | २ |३० व ३१ प्रकृतिक असंयम ६ २३-२५-२६-२८-९ ।। |२१-२४-२५-२६- ७ २९ व
२७-२८-२९-३०
९३-९२-९१-९०८०-७९-७८ व ७७ १३-९२-९१-९०८०-७९-७८-७७१० व ९ प्रकृतिक
९३-९२-९१ व ९०
९३-९२-९१-९०८८-८४ व ८२ प्रकृ.