Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ६०९
नोट- केवली न सब्जी हैं न असञ्ज्ञी हैं अतः उनके उदय व सत्त्वस्थान यहाँ नहीं कहे हैं।
अथानन्तर १४ मार्गणाओंमें नामकर्मके बन्ध-उदय व सत्त्वरूप स्थानोंका वर्णन करनेकी इच्छा रखनेवाले आचार्य सर्वप्रथम क्रमप्राप्त गतिमार्गणामें उनस्थानोंको कहते हैं
दो छक्कट्टचक्कं णिरयादिसु णामबंधठाणाणि । पणणवएगारपणयं तिपंचबारसचउक्कं च ॥ ७१० ॥
अर्थ - नामकर्मके बन्धस्थान नरकगतिमें २ तिर्यञ्चगतिमें ६, मनुष्यगति ८ और देवगतिमें चार हैं; उदयस्थान क्रमसे ५-९-११ व ५ हैं तथा सत्त्वस्थान ३-५-१२ व ४ यथाक्रम से जानना । अब उपर्युक्त कथन को तीन गाथाओं में स्पष्ट करते हैं
णिरयादिणामबंधा उगुतीसं तीसमादिमं छक्कं । सव्वं पणछत्तरवीसुगुतीसंदुगं होदि ।।७११ ।। उदया इगिपणसंग अडणववीस एकवीसपहुदिणवं । चवीसहीणसव्वं इगिपणसग अट्ठणववीसं ॥७१२ ॥
सत्ता बाणउदितियं बाणउदीणउदिअट्ठसीदितियं । बासीदिहीणसव्वं तेणउदिचक्कयं होदि ||७१३ || विसेस |
अर्थ - नरकगतिमें नामकर्मके बन्धस्थान २९ व ३० प्रकृतिरूप दो, उदयस्थान २१-२५-२७२८ व २९ प्रकृतिरूप पाँच, सत्त्वस्थान ९२ ९९ व ९० प्रकृतिरूप तीन हैं। तिर्यञ्चगतिमें बन्धस्थान २३-२५-२६- २८-२९ व ३० प्रकृतिक छह, उदयस्थान २१-२४-२५-२६-२७-२८-२९-३० व ३१ प्रकृतिक ९, सत्त्वस्थान ९२ ९०-८८-८४ व ८२ प्रकृतिक पाँच हैं। मनुष्यगतिमें बन्धस्थान सभी, उदयस्थान २४ प्रकृतिकस्थानबिना शेष सर्व हैं, ८२ प्रकृतिक स्थानबिना ९३-९२-९१-१०-८८-८४८०-७९-७८-७७-१० व ९ प्रकृतिरूप १२ सत्त्वस्थान हैं। देवगतिमें २५-२६-२९ व ३० प्रकृतिक चार बन्धस्थान, २१-२५-२७-२८ व २९ प्रकृतिक पाँच उदयस्थान, ९३-९२-९१ व ९० प्रकृतिक चार सत्त्वस्थान हैं।