Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-६०८
अर्थ - अपर्याप्तसम्बन्धी सात जीवसमासोंमें बन्धस्थान २३-२५-२६-२९ व ३० प्रकृतिरूप पाँच हैं, उदयस्थान स्थावरलब्ध्यपर्याप्तकमें २१ व २४ प्रकृतिक तथा त्रसलब्ध्यपर्याप्तमें २१ व २६ प्रकृतिक दो-दो हैं, सत्त्वस्थान ९२-९०-८८-८४ और ८२ प्रकृतिरूप पाँच हैं। सूक्ष्म-बादर एकेन्द्रिय व विकलत्रयमें बन्ध-सत्त्वस्थान तो अपर्याप्तवत् ही जानना, किन्तु उदयस्थान सूक्ष्मजीवोंमें २१-२४२५ व २६ प्रकृतिक चार तथा बादरजीवोंमें २१-२४-२५-२६ व २७ प्रकृतिक पाँच हैं। विकलत्रयजीवोंमें बन्धस्थान २३-२५-२६-२९ व ३० प्रकृतिक पाँच, उदयस्थान २५-२६-२८-२९-३०५३१ प्रकृतिरूप ६ हैं तथा सत्त्वस्थान ९२-९०-८८-८४ व ८२ प्रकृतिक पाँच हैं। असञ्जीजीव के बन्ध-उदय व सत्त्वस्थान विकलत्रयवत् जानना, किन्तु विशेषता यह है कि असञ्जीजीव २८ प्रकृतिकस्थानको भी बाँधते हैं अतः बन्धस्थान तो ६ हैं। सझीजीवोंमें बन्धस्थान २३-२५-२६-२८-२९-३०-३१ व १ प्रकृतिरूप आठ हैं, उदयस्थान २१-२५-२६-२७-२८-२९-३० व ३१ प्रकृतिक ८ हैं तथा सत्त्वस्थान १० व १ प्रकृतिक दो स्थानोंके बिना शेष ९३-९२-९१-९०-८८-८४-८२-८०-७९-७८. और ७७ प्रकृतिरूप ११ हैं।
१४ जीवसमासों में नामकर्म के बन्ध-उदय व सत्त्वस्थानसम्बन्धी सन्दृष्टि
जीवसमास
बंधस्थान बंधस्थानगत उदय- उदयस्थानगत ] सत्व- | सत्त्वस्थानगत की संख्या प्रकृतिसंख्या स्थानकी प्रकृतिसंख्या स्थान की प्रकृतिसंख्या संख्या
संख्या
सात अपर्याप्त
२१-२४ स्थावरके २१-२६ त्रसके २१-२४-२५ व
४
५
|
सूक्ष्पपर्याप्त
एकेन्द्रिय पर्याप्तबादर
२३-२५-२६
२९ व ३० । २३-२५-२६-
२९ व ३० २३.२५-२६
२९ व ३० २३-२५-२६
२९ व ३० २३-२५-२६२८-२९ व ३० २३-२५-२६२८-२९-३०
पर्याप्तविकलत्रय
९२-९०-८८८४२८२ प्रकृ. ९२-९०-८८८४ व ८२ ९२-९०-८८८४ व ८२ ९२-९०-८८८४ व ८२ ९२-९०-८८८४ व ८२ ९३-९२-९१९०-८८-८४८२-८०-७९७८ व ७७
२१-२४-२५
२६ व २७ २१-२६-२८२९-३० ३५ २१-२६-२८२९-३० व ३१ २१-२५-२६२७-२८-२९
३० व ३१
असञ्जीपंचेन्द्रिय
पर्याप्त पर्याप्तसञ्जीपंचेन्द्रिय
नोट-२५ व २७ प्रकृति का उदय| स्थान देव-नारकी
अपेक्षा है।