Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५७४ नरकगतिमें आयुकर्मके बन्ध-उदय-सत्त्वसम्बन्धी सन्दृष्टितिर्यञ्चायु
मनुष्यायु बन्ध | अबन्ध । उपरतबन्ध | बन्ध अबन्ध
१ ति. आयु | ० १ उप. म. | | उदय । १ न. १ न. | १ न. १ न. |
उपरतबन्ध
बन्ध
१ उप.
१ न.
सत्व
२ ति.न.
१ न.
२ ति.न. |
२ म.न.
१ न.
२ म.न.
मनुष्यगतिमें आयुकर्मके बन्ध-उदय-सत्त्वसम्बन्धी सन्दृष्टिनरकायु
तिर्यञ्चायु ।
ष्यायु
देवाय
अबन्ध
उपरतबंध
बन्ध
अबन्ध
अबन्ध
उपरतबंध
बन्ध
अबन्ध
१ न.
'h
बन्ध
१उप,
१ देव !
.
| १ म. , १ उप. | उपरतबंध | .
१ म. | १ ति. ।
| उपरतबंध | १ म. | १उप. २ ति.म.
|
म.
उदय
१ म.
१ म,
१ म. | १ म. .
3
२ न.म.
२ न.म. |
२ ति,म.
२ म.म.
दे.भ
18
२
नोट - मूलगाथाका सारांश यह है कि एक-एक आयुकी अपेक्षासे तीन-तीन भंग होते हैं, जिसगतिमें जितनी आयुका बन्ध हो उस बध्यमान आयुकी संख्याको ३ भंगोंसे गुणा करनेपर सर्वभंगोंकी संख्या निकल जाती है।
जिसगतिमें जितनी आयुका बन्ध हो उसमेंसे १ कम करनेसे शेष पुनरुक्त भंग रह जाते हैं अथवा सर्वभंगोंमेंसे पुनरुक्तभङ्गोंको घटानेपर शेष अपुनरुक्तभंग रहते हैं। जैसे- भुज्यमानदेवायुमें मनुष्यतिर्यञ्चायुका बन्ध होता है अर्थात् २४३-६ भंग हुए। देवगतिमें २ आयुका बन्ध है उसमेंसे १ कम करनेपर १ पुनरुक्तभंग होता है उसको घटानेसे ६-१-५ अपुनरुक्तभंग जानना ।