Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५७२ अर्थ – एकजीव एकंभवमें एक ही आयका बन्धं करता है और वह भी योग्यकालमें आठबार ही बाँधता है तथा वहांपर भी वह सभी स्थानोंपर आयुकी त्रिभागी शेष रहनेपर ही बँधती है।
इगिवारं वजित्ता वड्डी हाणी अवट्ठिदी होदि।
ओवट्टणघादो पुण परिणामवसेण जीवाणं ।।६४३।। ____ अर्थ - पूर्वकथित आठ अपकर्षोंमें (त्रिभागीमें) प्रथमबारके बिना द्वितीयादि बारमें जो पहले आयु बाँधी थी उसकी स्थितिकी वृद्धि हानि और अवस्थिति होती है। कर्मभूमिज मनुष्यतिर्यञ्चोंकी भुज्यमान आयुका परिणामोंके निमित्तसे अथवा बाह्यनिमित्तसे अपवर्तनधात (कदलीघात) भी होता है।
१.शंका - एकपर्याय में एक ही गति का बंध होगा या विशेष का अर्थात् दो, तीनगति का बंध हो जाता है। यदि एक पर्याय में दो, तीनमति का बंध होगा तो आयु के त्रिभाग में बंध होना कैसे संभव होता है ? श्रेणिक महाराज का एक गति से दो दो बंध माने गये। एक नरकगति का दूसरे तीर्थंकरप्रकृति का बंध हुआ तो उन्हें मनुष्यगति का बन्ध हुआ कि नहीं या नरक ही में उनको मनुष्यगति का बन्ध होगा?
समाधान -- शंका से ऐसा प्रतीत होता है कि आयु और गति को एक समझा है। कर्म आठ प्रकार के हैं। उन आठ में से एक नामकर्म है और एक आयुकर्म है। नामकर्म की ९३ उत्तरप्रकृति हैं और एकप्रकृति का दूसरी प्रकृतिरूप संक्रमण भी हो जाता है, किन्तु आयुकर्म की ४ उत्तरप्रकृति हैं और आयुकर्म की एक उत्तरप्रकृति का दूसरी उत्तरप्रकृतिरूप संक्रमण नहीं होता
नामकर्म की ९३ उत्तरप्रकृतियों में गति' नाम की भी भिंडरूप उत्तरप्रकृति है जिसके नरक, तिर्थच, मनुष्य, देवरूप चार भेद हैं। इनमें से जिस समय किसी एक गति का उदय होता है तो अन्य तीन मतियाँ स्तिबुकसंक्रमण द्वारा उदयगत गतिरूप संक्रमण होकर उदय में आती हैं। अत: एकजीत्र के एक ही पर्याय में यथासंभव चारों गतियों का यथाक्रम बंध हो सकता है। एक जीव के एकपर्याय में एकसे अधिक गति का भी बंध हो सकता है, किन्तु एक जीव के एकपर्याय में एक ही आयु का बंध होगा अन्य आयुका बंध नहीं हो सकता। जिस समय आयुका बंध होता है उससमय गति का बंध भी आयु के अनुसार होगा, अर्थात जिस आय का बंध होगा उस समय उसही गति का बंध होगा। एक पर्याय में एक हो आय के बँधने में कारण यह है कि 'एक आयु का दूसरी आयुरूप संक्रमण नहीं होता है।'
मरण के अनन्तर समय में जिस आयु का उदय होगा उस ही गति का भी उदय होगा और उस ही गति में जीव जन्म लेगा। उस समय विवक्षितगति के अतिरिक्त अन्य तीन गतियाँ स्तिबुकसंक्रमण के द्वारा विवक्षितगतिरूप संक्रान्त होकर उदय में आती
राजा श्रेणिक के मिथ्यात्व अवस्था में परिणाम अनुसार चारोंगतियों का बंधसंभव है, किन्तु जिस समय नरकायु का बंध किया उस समय तो नरकगति का ही बंध हुआ। सम्यक्त्व काल अथवा तीर्थकरप्रकृति के बंधकाल में मात्र एक देवगति का ही निरन्तर बंध हुआ, क्योंकि सम्यादृष्टि मनुष्य या तिर्यंच के अन्य तीनगति की अंधव्युच्छित्ति हो जाने से अन्य तीनगति का बंध नहीं होता। सम्यग्दृष्टिदेव व नारकी निरन्तर एक मनुष्यगति का हो बन्ध करते हैं अन्य गति का नहीं। अत: श्रेणिक महाराज नरक में निरन्तर मनुष्यगतिका बंध कर रहे हैं और ६ मास आयुधोष रह जाने पर मनुष्यायुका ही बंध करेंगे।
(पं. रतनचंद मुख्तार : व्यक्तित्व और कृतित्त्व, पृ. ४२३-२४))