Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५९० बन्ध-उदय घ सत्त्व में से दो को आधार तथा एक को आधेय बनाकर कथन करते हैं
बंधुदये सत्तपदं बंधंसे णेयमुदयटाणं च।
उदयंसे बंधपदं दुट्ठाणाधारमेकमाधेज्जं ॥६७३ ।। अर्थ- बन्ध-उदयस्थानोंमें सत्त्वस्थान, बन्ध-सत्त्वस्थानोंमें उदयस्थान और उदय-सत्त्वस्थानों में बन्धस्थान इसप्रकार दो स्थानोंको आधार तथा एक स्थानको आधेय बनाकर तीन प्रकारसे भा जानने चाहिए। अब सर्वप्रथम ६ गाथाओं से बन्ध-उदयस्थानों में सत्त्वस्थानों का कथन करते हैं
बावीसेण णिरुद्धे दसचउरुदये दसादिटाणतिये।
अट्ठावीसति सत्तं सत्तुदये अट्टवीसेव ॥६७४।। अर्थ – २२ प्रकृतिक बन्धसहित जीवके १०-९-८ व १७ प्रकृतिक चारउदयस्थान हैं। उनमें १०-९ व ८ प्रकृतिक तीनस्थानोंमें सत्त्वस्थान २८-२७ व २६ प्रकृतिक तीन हैं और ७ प्रकृतिक उदयस्थानमें २८ प्रकृतिक स्थानका ही सत्त्व है।
इगिवीसेण णिरुद्ध णवयतिये सत्तमट्ठवीसेव ।
सत्तरसे णवचदुरे अडचउतिदुगेकवीसंसा ।।६७५ ॥ अर्थ – २१ प्रकृतिक बन्धसहित जीवके ९-८-७ प्रकृतिक तीनस्थानोंके उदयहोनेपर २८ प्रकृतिक एक ही सत्त्वस्थान है और १७ प्रकृतिक बन्धस्थानसहित जीवके ९-८-७ व ६ प्रकृतिक चारस्थानोंका उदय होनेपर २८-२४-२३-२२ और २१ प्रकृतिरूप ५ सत्त्वस्थान हैं। यहाँपर कुछ विशेषता है उसे २ गाथाओं में कहते हैं
इगिवीसं ण हि पढमे चरिमे तिदुवीसयं ण तेरणवे।
अडचउसगचउरुदये सत्तं सत्तरसयं व हवे ॥६७६॥ अर्थ - प्रथम ९ प्रकृतिका उदय होनेपर २१ प्रकृतिक सत्त्वस्थान नहीं होता है और अन्तमें ६ प्रकृतिका उदय होनेपर २३ व २२ प्रकृतिरूप सत्त्वस्थान नहीं होता तथा १३ प्रकृति के बन्धसहित ८१७-६ व ५ प्रकृतिरूप चार उदयस्थानोंके होनेपर तथा ५ प्रकृतिक बधस्थानसहित ७-६-५ व ४ प्रकृतिक चार उदयस्थानोंके होनेपर जैसे १७ प्रकृतिके स्थानमें सत्त्वस्थान कहे थे उसीप्रकार यहाँ भी सत्त्वस्थान जानना अर्थात् १३ प्रकृति का बन्ध होते हुए ५ प्रकृतिक उदयस्थानमें और ९ प्रकृतिका अन्ध