Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५९९
दसामुदये अडत्रीमतिसत्ते बावीसबंध णवअट्टे । अडवीसे बावीसतिचउबंधो सत्तवीसदुगे॥६८५॥ बावीसबंध चदुतिदुवीसंसे सत्तरसयददुगबंधो। अठ्ठदये इगिवीसे सत्तरबंध विसेसं तु ।।जुम्मं ॥६८६ ॥
अर्थ – १० प्रकृतिके उदयसहित २८ प्रकृतिक सत्त्वस्थानमें २२ प्रकृतिक बन्ध है, ९ व ८ प्रकृतिके उदयसहित २८ प्रकृतिक सत्त्वस्थानमें २२-२१-१७ व १३ प्रकृतिक चार बन्धस्थान हैं। १०९ व ८ प्रकृतिके उदयसहित २७ व २६ प्रकृतिक सत्त्वस्थानमें २२ प्रकृतिक बन्ध है। मिश्रगुणस्थानमें २४ प्रकृतिक सत्त्वमें और असंयतगुणस्थानमें २४-२३ व २२ प्रकृतिके सत्त्वमें ९-८, व ७ प्रकृतिका उदय रहते हुए १७ प्रकृति का बन्ध है। २४ प्रकृतिक सत्त्वमें ८-७ व ६ प्रकृतिका उदय होते हुए देशसंयतगुणस्थानमें १३ प्रकृतिका बन्ध है, क्षायिकसम्यग्दृष्टि असंयतके २१ प्रकृतिके सत्त्वसहित ८७-६ प्रकृतिके उदयमें १७ प्रकृतिका बन्ध है।
सत्तुदये अडवीसे बंधो बावीसपंचयंतेण । चवीसतिगे अयदतिबंधो इगिवीसगयददुगबंधो ।।६८७ ॥
अर्थ – ७ प्रकृतिके उदय रहते हुए २८ प्रकृतिके सत्त्वमें २२-२१-१७-१३ व ९ प्रकृतिरूप ५ बन्धस्थान हैं जो क्रमसे मिथ्यात्व-सासादन-असंयत-देशसंयत-प्रमत्त और अप्रमत्तसंयतके पाए जाते हैं। ७ प्रकृतिके उदयमें २४ प्रकृतिका सत्त्व रहते हुए असंयतमें १७, देशसंयत्तमें १३ और प्रमत्त-अप्रमत्तमें ९ प्रकृतिका बन्ध होता है, ७ प्रकृतिके ही उदयमें २१ प्रकृतिका सत्त्व रहनेपर असंयतके १७ एवं देशसंयतमें १३ प्रकृतिका बन्ध है।
छप्पणउदये उवसंतसे अयदतिगदेसद्गबंधो। तेण तिदोवीसंसे देसदुणवबंधयं होदि॥६८८ ।।
अर्थ - ६ प्रकृति का उदय रहते हुए २८-२४ व २१ प्रकृतिके सत्त्वमें असंयतगुणस्थानमें १७, देशसंयतमें १३ तथा प्रमत्त-अप्रमत्तके ९ प्रकृतिका बन्ध है, ५ प्रकृतिके उदयसहित २८-२४ व २१ प्रकृतिके सत्त्वमें देशसंयतके १३ एवं प्रमत्त-अप्रमत्तके ९ प्रकृतिका बन्ध पाया जाता है। ६ प्रकृति के उदयमें २३ व २२ प्रकृतिका सत्त्व रहते हुए देशसंयत के १३ प्रकृतिका बन्ध है तथा ५ प्रकृतिके उदयमें २३ व २२ के सत्त्वमें प्रमत्त व अप्रमत्तके ९ प्रकृतिका बन्ध है।