Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ६००
चउरुदयुवसंतंसे णवबंधो दोणिउदयपुध्वंसे । तेरसतियसत्तेवि य पण चउ ठाणाणि बंधस्स ।।६८९ ॥
अर्थ - ४ प्रकृतिके उदयसहित दोनोंश्रेणी के अपूर्वकरणगुणस्थानमें २८- २४ व २१ प्रकृतिका सत्त्व होनेपर १ प्रकृतिका बन्ध है। २ प्रकृतिके उदयसहित सवेद अनिवृत्तिकरणमें १३, १२, ११ प्रकृतिका सत्त्व होनेपर पुरुषवेदके उदयके चरमसमयपर्यन्त पाँचप्रकृतिका बन्ध है। नपुंसक - स्त्रीवेदके उदयसहित श्रेणी चढ़नेवाले ४ प्रकृतिका भी बन्ध है तथा क्षपक श्रेणीमें ८ कषाय और नपुंसक व स्त्रीवेदका क्षय होनेपर पुरुषवेद क्षपणकालमें २१-१३-१२ व ११ प्रकृतिका सत्त्व होनेपर ५ प्रकृतिका बन्ध है । स्त्रीवेद व नपुंसकवेदके उदयसहित श्रेणीचढ़नेवाले के १३ व १२ प्रकृतिका सत्त्व होनेपर ४ प्रकृतिका बन्ध है (देखो गाथा. ५१५) ।
एक्कुदयुवसंतंसे बंधो चदुरादिचारि तेणेव । एयारदु चदुबंधो चदुरंसे चदुतियं बंधे ॥ ६९० ॥
अर्थ एक प्रकृतिके उदयसहित उपशमक अनिवृत्तिकरणमें २८ - २४ व २१ प्रकृतिका सत्त्व होनेपर ४-३२ और १ प्रकृतिक बन्धस्थान हैं तथा १ प्रकृतिके उदयसहित १९ व ५ प्रकृतिका सव होनेपर ४ प्रकृतिका बन्ध है । १ ही प्रकृतिके उदयसहित ४ प्रकृतिक सत्त्वस्थानके रहते हुए ४ व ३ प्रकृतिका बन्ध है ।
ते तिये तिदुबंध दुगसत्ते दोण्णि एक्कयं बंधो I एक्कसे इगिबंधी गयणं वा मोहणीयस्स ॥ ६९९ ॥
अर्थ - एक प्रकृतिके उदयसहित क्षपकअनिवृत्तिकरणगुणस्थानमें ३ प्रकृतिका सत्य रहते हुए ३ व २ प्रकृतिक बन्धस्थान हैं, एक ही प्रकृतिके उदयसहित २ प्रकृतिका सत्त्व होनेपर २ व १ प्रकृतिक बन्धस्थान हैं तथा एक ही प्रकृतिके उदयसहित १ प्रकृतिक सत्त्वस्थानमें १ ही प्रकृतिका बन्ध है अथवा बन्धका अभाव है। इसप्रकार मोहनीयकर्मके त्रिसंयोगी भङ्ग जानना ।
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