Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५९१
होते हुए ४ प्रकृतिक उदयस्थानमें २२ व २३ प्रकृति का सत्त्व नहीं है तथा १३ प्रकृतिक बन्धस्थानमें ८ प्रकृतिक उदयस्थान एवं ९ प्रकृतिक बन्धस्थानमें ७ प्रकृतिक उदयस्थान होनेपर २१ प्रकृति सत्त्वस्थान नहीं होता है।
णवरि य अपुब्वणवगे छादितियुदयेवि पत्थि तिदुवीसा।
पणबंधे दो उदये अडचउरिगिवीसतेरसादितियं ।।६७७ ।। अर्थ - यहाँ इतनी और भी विशेषता है कि अपूर्वकरणगुणस्थानमें ९ प्रकृतिके बन्धसहित ६५ व ४ प्रकृतिरूप तीन उदयस्थान होनेपर भी २३ और २२ प्रकृतिका सत्त्व नहीं होता है और पाँच प्रकृतिके बन्धसहित दो प्रकृतिके उदय होते हुए २८-२४-२१-१३-१२ व ११ प्रकृतिक छह सत्त्वस्थान हैं अर्थात् उपशमश्रेणीमें २८-२४ व २१ का तथा १३-१२ व ११ प्रकृतिका सत्त्वस्थान क्षपकश्रेणी होता है।
चदुबन्धे दो उदये सत्तं पुव्वं व तेण एकुदये।
अडचउरेक्कावासा एयारतिगं च सत्ताणि ॥६७८ । । अर्थ - ४ प्रकृतिक बन्धसहित दो प्रकृतिके उदय होनेपर सत्त्वस्थान पूर्वोक्त प्रकार जानना अर्थात् उपशमश्रेणीमें २८-२४ व २१ प्रकृतिक तथा क्षपकश्रेणीमें १३-१२ व १५ प्रकृतिक सत्त्वस्थान है तथा उसी ४ प्रकृतिके बन्धसहित एक प्रकृतिका उदय होनेपर उपशमश्रेणीमें २८-२४ व २१ और क्षपकश्रेणीमें ११-५ व ४ प्रकृतिरूप ३-३ सत्त्वस्थान जानने योग्य हैं।
तिदुइगिबंधेकुदये चदुतियठाणेण तिदुगठाणेण।
दुगिठाणेण य सहिता अडचउरिगिवीसया सत्ता॥६७९॥ अर्थ – तीन-दो और एकप्रकृतिके बन्धसहित एकप्रकृतिका उदय होनेपर उपशमश्रेणीमें २८२४ व २१ प्रकृतिरूप तीन सत्त्वस्थान हैं तथा क्षपकश्रेणीमें तीनप्रकृतिरूप बन्धस्थानमें एकप्रकृतिरूप उदय होनेपर ४ व ३ प्रकृतिक सत्त्वस्थान हैं। २ प्रकृतिक बन्धस्थानमें १ प्रकृति का उदय होनेपर एवं १ प्रकृतिक बन्धस्थानमें १ प्रकृति का उदय होनेपर ३ व २ प्रकृतिक सत्त्वस्थान और २ व १ प्रकृतिरूप दो-दो सत्त्वस्थान हैं।
विशेषार्थ – मोहनीयकर्म की सर्वबन्धप्रकृतियोंमें चारोंगतिके मिथ्यादृष्टिजीव २२ प्रकृति का बन्ध करते हैं उनके मिथ्यात्वसहित और अनन्तानुबन्धीके उदयसहित या रहित आठ कूट कहे हैं। उनमें अपुनरुक्त १०-९-८ व ७ प्रकृतिक चार उदयस्थान एक जीवकी अपेक्षा तो अनुक्रमसे और नानाजीवकी