Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५९५ अथानन्तर बंध व सत्त्व को आधार मानकर उदय को आधेय मानते हुए ५ गाथाओं से भङ्ग कहते हैं
बावीसे अड़वीसे दसचउरुदओ अणे ण सगवीसे।
छब्बीसे दसयतियं इगिअडवीसे दु णवतियं ॥६८०॥ अर्थ - २२ प्रकृतिके बन्धसहित चारोंगतिवाले मिथ्यादृष्टिजीवके २८ प्रकृतिका सत्त्व होते हुए १०-९-८ व ७ प्रकृतिरूप ४ उदयस्थान हैं, क्योंकि यहाँ अनन्तानुबन्धोरहित भी उदयस्थान है तथा २२ प्रकृतिके बन्धसहित २७ व २६ प्रकृतिका सत्त्व रहते हुए १०-९ व ८ प्रकृतिरूप तीन ही उदयस्थान होते हैं, क्योंकि यहाँ अनन्तानुबन्धो का अभाव नहीं होता है। २१ प्रकृतिके बन्धसहित चारों गति के सासादनगुणस्थानमें २८ प्रकृतिका सत्त्व होता है, मिथ्यात्वके उदयका अभाव होनेसे ९-८ व ७ प्रकृतिक तीन उदयस्थान हैं।
सत्तरसे अडचदुवीसे णवयचदुरुदयमिगिवीसे।
णो पढमुदओ एवं तिदुवीसे णंतिमस्सुदओ ॥६८१ ॥ अर्थ - १७ प्रकृतिके बन्धसहित चारोंगतिके जीवोंमें २८ व २४ प्रकृतिका सत्त्व होनेपर ९८-७ व ६ प्रकृतिक चार उदयस्थान हैं, क्योंकि मिश्रगुणस्थानमें सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृतिसहित तीन ही उदयस्थान हैं, असंयतगुणस्थानमें चार उदयस्थान हैं। १७ प्रकृतिके बन्धसहित २१ प्रकृतिका सत्त्व होनेपर चारोंगतिके असंयतजीवोंमें क्षायिकसम्यग्दृष्टिके ९ प्रकृतिक उदयस्थानका अभाव होनेसे ८-७ व ६ प्रकृतिक तीन उदयस्थान हैं तथा १७ प्रकृतिके बन्धसहित २२ व २३ प्रकृतिक सत्त्ववालेके ६ प्रकृतिक उदयस्थान नहीं होनेसे ९-८ व ७ प्रकृतिरूप तीन उदयस्थान हैं।
तेरणवे पुव्वंसे अडादिचउ सगचउण्हमुदयाणं। सत्तरसं व वियारो पणगुवसंते सगेसु दो उदया ।।६८२ ।। तेणेवं तेरतिये चदुबंधे पुव्वसत्तगेसु तहा।
तेणुवसंतंसेयारतिए एक्को हवे उदओ।।६८३ ।। अर्थ -- १३ प्रकृतिके बन्धसहित देशसंयतगुणस्थानवर्ती तिर्यञ्च व मनुष्यके और ९ प्रकृतिके बंधसहित प्रमत्त व अप्रमत्तगुणस्थानके २८-२४-२३ व २२ प्रकृतिक चारसत्वस्थान होते हुए देशसंयतगुणस्थानमें ८-७ व ६ प्रकृतिक तीन एवं प्रमत्त-अप्रमत्तगुणस्थानमें ७-६ व ५ प्रकृतिक तीन उदयस्थान हैं। १३ प्रकृतिके ही बन्धमें २१ प्रकृतिका सत्त्व होते हुए ८ प्रकृतिक उदयस्था बिना ७-६