Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५८५
सगचउ पुव्वं वंसा दुगमडचउरेक्कवीस तेरतियं । दुगमेक्कं च य सत्तं पुव्वं वा अत्थि पणगदुगं ।।६६३ ।। तिसु एकेक उदओ अडचउरिगिवीससत्तसंजुत्तं ।
चदुतिदयं तिदयदुगं दो एक्कं मोहणीयस्त ॥६६४ ।। अर्थ- मिथ्यात्वगुणस्थानके २२ प्रकृतिक बन्धस्थानमें उदयस्थान पूर्वोक्त ४ (१७, ९, ८,७) एवं सत्त्वस्थान ३ (२८-२७-२६) है, सासादनगुणस्थानके २१ प्रकृतिरूप बन्धस्थानमें उदयस्थान ३ (९, ८, ७) एवं सत्त्वस्थान एक (२८) है, मिश्र गुणस्थानके १७ प्रकृतिक बन्धस्थानमें उदयस्थान ३ (९, ८, ७) एवं सत्त्वस्थान दो (२८-२४) हैं, व असंयतगुणस्थानसम्बन्धी १७ प्रकृतिक, देशसंयतगुणस्थानके १३ प्रकृतिक, प्रमत्त-अप्रमत्त व अपूर्वकरणगुणस्थानसम्बन्धी ९ प्रकृतिक इसप्रकार (१७-१३ व ९) तीन बन्धस्थानोंमें उदयस्थान तो चार-चार (२, ८, ७, ६ और ८, ७, ६, ५ एवं ७, ६, ५, ४) हैं, किन्तु अपूर्वकरणके १ प्रतिकस्थानमें मन
हैं और सत्त्वस्थान पाँच-पाँच (२८-२४-२३-२२-२१) हैं, परन्तु अपूर्वकरणमें तीन ही सत्त्वस्थान (२८-२४२१) हैं। अनिवृत्तिकरणगुणस्थानके ५ प्रकृतिक बन्धस्थानमें उदयस्थान एक (२) एवं सत्त्वस्थान (२८२४-२१-१३-१२ व ११ प्रकृतिरूप) हैं, इसीगुणस्थानके ४ प्रकृतिक बन्धस्थानमें उदयस्थान २ (२. १) तथा सत्त्वस्थान उपशमश्रेणीकी अपेक्षा २८-२४ व २१ प्रकृतिक तथा क्षपकश्रेणीकी अपेक्षा २११३-१२-११-५ व ४ प्रकृतिक इसप्रकार आठ हैं। अनिवृत्तिकरणगुणस्थानके ही ३-२ व १ प्रकृतिरूप बन्धस्थानमें उदयस्थान तो सर्वत्र एक प्रकृतिरूप ही है, किन्तु सत्त्वस्थान उपशमश्रेणीकी अपेक्षा तो २८-२४ व २१ प्रकृतिरूप तीन हैं तथा क्षपक्रश्रेणीकी अपेक्षा ३ प्रकृतिक बन्धस्थानमें ४ व ३ प्रकृतिक, २ प्रकृतिक बंधस्थानमें ३ व २ प्रकृतिक एवं १ प्रकृतिक बन्धस्थानमें २ व १ प्रकृतिक जानना ।
मोहनीयके बन्धस्थानमें उदय व सत्त्वस्थानसम्बन्धी सन्दृष्टि
गुणस्थान
बन्ध- | उदयस्थानगत | स्थान की प्रकृति
संख्या
उदयस्थानगत प्रकृति संख्या
सत्त्व| स्थान की
संख्या
सत्त्वस्थानगत प्रकृति संख्या
मिथ्यात्व
सासादन
९-८ व
२८-२७ व २६ प्रकृतिक
२८ प्रकृतिक २ | २८ व २४ प्रकृतिक
| २८-२४-२३-२२ व २५ प्रकृतिक
।
मिश्र असंयत
५-८-७ व ६