Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५८७ तत्तो तियदुगमेक्कं दुप्पयडीएक्कमेक्कठाणं च ।
इगिणभबंधो चरिमे एउदओ मोहणीयस्स ॥६७२ ।। अर्थ – २८ प्रकृतिक सत्त्वस्थानमें बन्धस्थान १० तथा उदयस्थान ९ हैं, २७ प्रकृतिक सत्त्वस्थानमें बन्धस्थान १ (प्रथम २२ का) व उदयस्थान १०-९-८ प्रकृतिरूप ३ हैं। २६ प्रकृतिक सत्त्वस्थानमें बन्धस्थान (२२ प्रकृतिक) १ और उदयस्थान १०-९-८ प्रकृतिरूप ३ हैं, २४ प्रकृतिक सत्त्वस्थानमें बन्धस्थान १७ आदि सन्न हैं और उदयस्थान ९ आदि सब हैं अर्थात् दोनों ८-८ हैं, २३ प्रकृतिक सस्वस्थानमें बन्धस्थान १७-१३-९ प्रकृतिरूप ३ एवं उदयस्थान ९-८-७-६-५ प्रकृतिरूप हैं, २२ प्रकृतिकरूप सत्त्वस्थानमें बन्धस्थान १७-१३-९ प्रकृतिक ३ तथा उदयस्थान ९-८-७-६-५ प्रकृतिक ५ हैं, २१ प्रकृतिक सत्त्वस्थान में बाथान १७ आदि ल न ८ कि सब अर्थात् ८ व ७ हैं, १३ प्रकृतिक सत्त्वस्थान में बन्धस्थान ५-४ प्रकृतिक २ एवं उदयस्थान २ प्रकृतिक १ ही है, १२ प्रकृतिक सत्त्वस्थानमें बन्धस्थान ५-४ प्रकृतिक २ तथा उदयस्थान २ प्रकृतिक १ ही है। ११ प्रकृतिक सत्त्वस्थानमें बन्धस्थान ५-४ प्रकृतिक दो एवं उदयस्थान २-१ प्रकृतिक २ हैं, ५ प्रकृतिरूप सत्त्वस्थानमें बन्धस्थान ४ प्रकृतिक एक और उदयस्थान एक प्रकृतिक अर्थात् दोनों १-१ हैं, ४ प्रकृतिक सत्चस्थानमें बन्धस्थान ४-३ प्रकृतिक २ एवं उदयस्थान १ प्रकृतिक है, ३ प्रकृतिक सत्त्वस्थानमें बन्धस्थान ३, २ प्रकृतिक २ एवं उदयस्थान १ प्रकृतिक है, २ प्रकृतिक सत्त्वस्थानमें बन्धस्थान २१ प्रकृतिक और उदयस्थान १ प्रकृतिक है तथा १ प्रकृतिक सत्त्वस्थानमें बन्धस्थान १ प्रकृतिक अथवा शून्य (बंध का अभाव) तथा उदयस्थान भी एक प्रकृतिक ही है।