Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५७६ चारगुणस्थानोंमें दो-दो तथा क्षपकश्रेणीमें अपूर्वकरणसे अयोगींगुणस्थानपर्यन्त एक-एक अपुनरुक्त भंग कहा है। गुणस्थानकी अपेक्षा अपुनरुक्तभंगों की सन्दृष्टि--
चतुर्गतिसम्बन्धीभङ्ग चारोंगतिके गुणस्थान
सर्वभंगोंकी
विशेष विवरण नरक | तिर्यंच | मनुष्य , देव संख्या
मिथ्यात्व
२८
सासादन
मनुष्य-तिर्यञ्चगतिमें नरकायुका बंध नहीं है अतः इन दोनोंगतियों में एक-एक भङ्ग कम हुआ। इस गुणस्थानमें आयुबंधका अभाव है अतः बन्ध सम्बन्धी भङ्ग नहीं कहे।
मिश्र
असंयत
यहाँ देव-नरकगतिमें तिर्यञ्चायु का बन्ध नहीं होता अत; एक-एक भङ्ग कम हुआ तथा मनुष्य-तिर्यंचगतिमें मनुष्य, तिर्यञ्च व नरकायु का बन्ध नहीं होता अतः ३-३ भंग कम किए। तिर्यञ्च-मनुष्यगति में एक देवायु का बन्ध होता है अत: बन्ध-अबंध एवं उपरतबन्धकी अपेक्षा ३-३ भा हैं।
देशसंयत
प्रमत्त
अप्रमत्त
उपशमक अपूर्वकरण
२ भन (देवाधुका अबन्ध एवं उपरतबन्धकी अपेक्षा)