Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५७५
आगे गुणस्थानोंमें आयुकर्मके अपुनरुक्तभंगोंको कहते हैंपण णव णव पण भंगा आउचउक्केसु होंति मिच्छम्मि । णिरयाउबंधभंगेणूणा ते चेव बिदियगुणे ।।६४६ ॥ सव्वाउबंधभंगेणूणा मिस्सम्मि अयदसुरणिरये। णरतिरिये तिरियाऊ तिण्णाउगबंधभंगूणा ।।६४७ ।। देस णरे तिरिये तियतियभङ्गा होति छट्टसत्तमगे। तियभंगा उवसमगे दो दो खवगेसु एक्केको ।।६४८ ॥
अर्थ – मिथ्यात्वगुणस्थानमें नरकगतिके ५, मनुष्यके ९, तियञ्चगतिक ९ और देवगतिके ५ भंग हैं; सासादनगुणस्थानमें आयुबन्धकी अपेक्षा मनुष्य-तिर्यञ्चके जो ४ भंग कहे थे उनमेंसे नरकायुके बन्धबिना बन्धरूप भंग होते हैं अतएव वहाँ नरकगतिके ५, मनुष्यगतिक ८. तिर्यञ्चतिके ८ और देवगतिके ५ भंग जानना ॥६४६॥
पूर्वमें आयुत्बन्धकी अपेक्षा जो भंग कहे थे वे सभी कम करनेपर मिश्रगुणम्थान में नरकगतिके ३, मनुष्यगतिके ५, तिर्यञ्चगतिके ५ और देवगतिके ३ भंग हैं तथा असंयतगुणस्थानम देव-नरकमतिमें तियंञ्चायुके बन्धरूप भंग न होनेसे चार-चार भंग हैं एवं मनुष्य-तिर्यञ्चगतिमें आयबन्धकी अपेक्षा नरक-तिर्यञ्च और मनुष्यायुरूप तीन भंग नहीं हैं, क्योंकि इनके बन्धका व्युच्छेद सासादनगुणस्थान ही हो गया है इसलिए यहाँ मनुष्यगतिके ६ और तिर्यञ्चगतिके भी ६ भंग जानना ।।६४७ ॥
देशसंयतगुणस्थानवर्ती तिर्यञ्च -मनुष्य के बन्ध-अबन्ध और उपरतबन्धकी अपेक्षा एक देवायुसे तीन-तोन भंग तथा प्रमत्त-अप्रमत्तगुणस्थानीय मनुष्यके देवायुके बन्धकी अपेक्षा बन्ध-अवन्ध और उपरतबन्ध होनेसे तीन-तीन भंग हैं। उपशमश्रेणीमें देवायुका बन्ध नहीं होनेसे अबन्ध और उपरतबन्धकी अपेक्षा दो-दो भंग हैं एवं क्षपकश्रेणीमें उपरतबन्धका भी अभाव होनेसे अबन्धकी अपेक्षा एक-एक ही भंग है, ऐसा जानना चाहिए ||६४८ ॥ ... आगे गुणस्थानों में सर्वगतिसम्बन्धी आयुकर्मके भंगसम्बन्धी कुल जोड़ कहते हैं
अडछव्वीसं सोलस वीसं छत्तिगतिगं च चदुसु दुगं ।
असरिसभंगा तत्तो अजोगिअंतेसु एकेको ।।६४९ ।। अर्थ - मिथ्यात्वगुणस्थानमें २८, सासादनगुणस्थानमें २६, मिश्रगुणस्थानमें १६, असंयतगुणस्थानमें २०, देशसंयतगुणस्थानमें ६, प्रमत्त व अप्रमत्तगुणस्थानमें ३-३ भंग, उपशमश्रेणिवाले