Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
८
९
१०
११
१२
१.३
७९
७८
1915
१०
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५६३
BAAL
अनिवृत्तिकरणगुणस्थान में जहाँ १३ प्रकृतियोंका क्षय होता है वहाँ से अयोगकेवली गुणस्थानके द्विचरमसमयपर्यन्त ये चारों सत्त्वस्थान पाये जाते हैं।
ये दोनों सस्वस्थान अयोगकेवली अन्तसमय में पाए जाते हैं ।
आगे गाथा ५१९ में कहे हुए ४१ जीवपदोंमें सत्त्वस्थानोंको कहते हैं
रिये बाइगिणउदी उदी भूआदिसव्वतिरियेसु । बाणउदी णउदी अडचउबासीदी य होंति सत्ताणि ।। ६२३ ।।
अर्थ – एकजीवापेक्षा नारकीजीवोंमें नामकर्मके सत्त्वस्थान ९२ ९१ और ९० प्रकृतिरूप हैं,
--
तथा पृथ्वीकायादि सर्व तिर्यञ्चमं ९२ ९०-८८-८४ और ८२ प्रकृतिक पाँच-पाँच सत्त्वस्थान हैं।
बासीदिं वज्जित्ता बारसठाणाणि होंति मणुवेसु । सीदादिचउट्ठाणा छट्टाणा केवलिदुगेसु ॥ ६२४ ॥
अर्थ - मनुष्योंमें पूर्वोक्त १३ सत्त्वस्थानोंमेंसे ८२ प्रकृतिक सत्त्वस्थानको छोड़कर शेष १२ स्थान होते हैं, किन्तु सयोगकेवलीके ८०- ७९-७८ और ७७ प्रकृतिरूप चारस्थान हैं तथा अयोगकेवलीके ८०-७९-७८- ७७-१० और १ प्रकृतिरूप ६ सत्त्वस्थान हैं।
समसिमट्टणाणि य कमेण तित्थिदरकेवलीस हवे | तिदुणवदी आहारे देवे आदिमचउक्कं तु ।। ६२५ ।।
अर्थ - पूर्वगाथामें सयोगकेवली ४ तथा अयोगकेवलीके ६ सत्त्वस्थान कहे हैं उनमें से तीर्थङ्करप्रकृतिसहित सयोग - अयोगकेवलीके समसंख्यारूप सत्त्वस्थान एवं तीर्थङ्करप्रकृतिरहित सामान्यसयोग-अयोगकेवली के विषमसंख्यारूप सत्त्वस्थान हैं। अर्थात् तीर्थङ्करप्रकृतिसहित सयोगकेवलीके ८० - ७८ प्रकृतिक तथा अयोगीके ८०-७८ और १० प्रकृतिक इसप्रकार तीन सत्त्वस्थान हैं और तीर्थङ्करप्रकृतिरहित सामान्यसयोगकेवलीके ७९-७७ प्रकृतिरूप तथा अयोगीके ७९-७७ और १ प्रकृतिक ऐसे तीन सत्त्वस्थान हैं। आहारक ९३ ९२ प्रकृतिक दो एवं वैमानिकदेवोंमें ९३-९२-९१ व ९० प्रकृतिरूप चारसत्त्वस्थान हैं।