Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५६५
अर्थ – इसप्रकार मूल-उत्तरप्रकृतियोंके बन्धोदयसत्त्वरूप स्थान तथा भङ्ग कहे अब बन्ध-उदय और सत्त्वके त्रिसंयोगी भङ्गोंको कहेंगे, आचार्यने ऐसी प्रतिज्ञा की है।
अट्ठविहसत्तछब्बंधगेसु अद्वेव उदयकम्मंसा।
एयविहे तिवियप्पो एयवियप्पो अबंधम्मि ॥६२८ ।। अर्थ - मूलप्रकृतियोंमें ज्ञानावरणादि ८ प्रकारके बन्धवाले अथवा सातप्रकारके बन्धवाले या छहप्रकारके बन्धवाले जीवोंके उदय और सत्त्व आठ-आठ प्रकार ही जानना। जिसके मूलप्रकृतिका बन्ध एकप्रकारका है उसके उदय ७ प्रकार और सत्त्व ८ प्रकार अथवा उदय-सत्त्व दोनों ही सात-सातप्रकार अथवा चार-चारप्रकारके होते हैं तथा जिसके एक भी मूलप्रकृतिका बन्ध नहीं है उसके उदय और सत्त्व चार-चारप्रकारके होनेसे एक ही विकल्प है।
मूलप्रकृतिके बन्ध-उदय और सत्त्वस्थानसम्बन्धी सन्दृष्टि
सत्त्व
उदय
आठ मूलप्रकृतियोंका आठ मूलप्रकृतियोंका
ज्ञानाबरणादि आठ मूलप्रकृतियोंका आठ मूलप्रकृतियोंका आठ मूलप्रकृतियोंका
आयु बिना सात मूलप्रकृतियोंका आठ मूलप्रकृतियोंका आठ मूलप्रकृतियोंका
मोहनीय व आयु बिना छह मूलप्रकृतियोंका
१०वाँ गुणस्थान आठ मूलप्रकृतियोंका मोहनीयबिना सात मूलप्रकृतियोंका मूलप्रकृतिकी एक सातावेदनीय १५वाँ
गुणस्थान मोहनीयबिना सात मोहनीयबिना सात मूलप्रकृतियोंका मूलप्रकृतिकी एक सातावेदनीय ५२वाँ मूलप्रकृतियोंका
गुणस्थान मूल प्रकृतिकी चार मूलप्रकृतिकी चार अघातिया प्रकृतियाँ | | मूलप्रकृतिकी एक सातावेदनीय १३वाँ अधातिया प्रकृतियाँ
गुणस्थान मूलप्रकृतिकी चार मूलप्रकृतिकी चार अघातिया प्रकृतियाँ | मूलप्रकृति बन्ध का अभाव १४वाँ अघातिया प्रकृत्तियां
गुणस्थान आगे इन त्रिसंयोगी भङ्गोंको गुणस्थानोंमें घटित करते हैं
१. यही गाथा प्रा.पं.सं.पू. २९६ पर गाथा संख्या ४ है।