Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५५५
देवगत्यानुपूर्वी ये दो प्रकृतियाँ कम करने पर ८८ प्रकृतिकस्थान, नरकगति-नरकगत्यानुपूर्वी, वैक्रियकशरीरवैक्रियकअंगोपांग इन चार उद्वेलनारूप प्रकृतियोंको ८८ प्रकृतिमेंसे घटानेपर ८४ प्रकृतिक स्थान होता है। इन्हीं ८४ प्रकृतियोंमेंसे उद्वेलनारूप मनुष्यगति-मनुष्यगत्यानुपूर्वी इन दो प्रकृतियोंको कम करनेसे ८२ प्रकृतिक स्थान होता है तथा 'णिरयतिरिक्खदु वियलं' इत्यादि ३३८वीं गाथामें कथित अनिवृत्तिकरणगुणस्थानमें क्षय होनेवाली १३ प्रकृतियों को ९३ प्रकृतिमेंसे घटानेपर ८० प्रकृतिक तथा ९२ प्रकृतियोंमेंसे इन्हीं १३ प्रकृतियोंको घटानेपर ७९ प्रकृतिक और ९५ प्रकृतियों में से इन्हीं १३
___ इन दो गाथाओं से इतना स्पष्ट हो जाता है कि पांचसंधान और पाँचवाया ये प्रकारचा, बंधव उदयनीतिमा में, शरीर नामकर्म में गर्भित करके इनको बंधव उदय प्रकृतियों में नहीं गिनी गई। सत्त्व की विवक्षा में पाँचसंघात और पाँचबंधन को शरीर नामकर्म में शामिल नहीं किया गया है, इसीलिये नामकर्म के ९३ प्रकृति आदि सत्त्वस्थान बतलाये हैं। वे स्थान इसप्रकार हैं
तिदुइगिणउदीणउदी अडचउदोअहियसीदि सीदिय । उण्णासीदत्तरि सत्तत्तरि दस यणव सत्ता ।।६०९॥ सव्वं तित्थाहारुमसुरणिरयणर दुचारिदुगे।
उध्वेल्लिदे हदे चउ तेरे जोगिस्स दसणवयं ।।६१०॥ (गो.क.) अर्थ -९३, ९२,९१, ९०,८८, ८४, ८२, ८०,७९, ७८, ७७, १०, ९ प्रकृतिरूप में नामकर्म के सत्त्वस्थान ५३ हैं। नामकर्म की सर्व प्रकृतिरूप ९३ का स्थान है। उनमें से तीर्थकर घटाने से ९२ का स्थान, आहारकयुगल घटाने से ९१ का, तीनों आहारकद्धिक और तीर्थकर घटाने से ९० का स्थान होता है। उस ९० के स्थान में देवगतिद्रिक की उद्वेलना होने से ८८ का स्थान होता है। नरकगतिद्विक और वैक्रियिकद्धिक की उद्वेलना होने पर ८४ का स्थान होता है। मनुष्यद्विक की उद्वेलना हो जाने पर ८२ का सत्त्वस्थान होता है। शेष सत्त्वस्थान क्षपक श्रेणी में सम्भव हैं। ___ इसीप्रकार ज्ञानपीठ से प्रकाशित पंचसंग्रह पृ. ३८५-३८९ पर गाथा २०८-२१९ में कथन है। तथा श्री अमितगति पंचसंग्रह पृ. ४६४-४६७ पर श्लोक २२१-२३० में कथन है।
हारदु सम्म मिस्संसुरदुग णरयचउक्रमणुकमसो।
उच्चागोद मणुदुगनुव्वेल्लिज्जतिजीवहिं ।।३५० ।। अर्थ-आहारऋद्विक, सम्यक्त्वप्रकृति, मिश्रमोहनी, देवगति का युगल, नरकगति आदि ४ (नरकद्विक वैक्रियिकद्विक), उच्च गोत्र, मनुष्यगतिद्विक ये १३ उद्वेलन प्रकृतियाँ हैं।
यहाँ पर यह बात विचारणीय है कि आहारकशरीर और आहारकशरीरअंगोपांग तथा वैक्रियिकशरीर व वैक्रियिकशरीरांगोपांग का तो उद्वेलन कहा, किंतु आहारकसंघात व आहारकशरीरबंधन, तथा वैक्रियिकसंघात व वैक्रियिकशरीरबंधन इन प्रकृतियों का उद्वेलन क्यों नहीं कहा है ? जिसने आहारकशरीर का बंध नहीं किया उसके (१) आहारकशरीर (२) आहारकशरीरानोपाज (३) आहारकशरीरसंघात (४) आहारकशरीरबंधन इन चार प्रकृतियों का सत्त्व नहीं पाया जाता है। अत: ९३ में से इन चार को घटाने पर ८९ का सत्त्वस्थान होता है और ९२ में से इन चार को घटाने पर ८८ का सत्त्वस्थान होता है। इन ४ को न घटाकर मात्र आहारकशरीर व आहारकशरीरांगोपांग इन दो को घटाकर ९१३९० का सत्त्वस्थान बतलाया है, यह भी विचारणीय है।
नरकगति की उद्वेलना होने पर नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीरअङ्गोपाल, वैक्रियिकसंघात,