Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५४७
पृथ्वीकायके जा ऽद्योतरी की सालों में कास्कीर्तिःसहाही अपेक्षा दो-दो भा होनेसे चार, बादरअप्काय और प्रत्येकवनस्पतिकायमें यशस्कीर्तियुगलकी अपेक्षा दो-दो भङ्ग होनेसे चार भङ्ग हैं। इसप्रकार २७ प्रकृतिकस्थानमें सर्व (१+३+४+४) १२ भंग जानना।
२८ प्रकृतिक उदयस्थानके शरीरपर्याप्तिकालमें निरतिशयसमुद्घातकेवलीके विहायोगतियुगल एवं छहसंस्थानकी अपेक्षा ६४२=१२ भंग, मनुष्य और संज्ञीतिर्यञ्चमें विहायोगति, सुभग, आदेय तथा यशस्कीर्ति ये चारयुगल एवं ६ संस्थान, ६ संहननकी अपेक्षा से (६४६x२x२x२x२) ५७६+५७६=११५२ भंग हैं, द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय और असञ्जीमें यशस्कीर्तियुगलकी अपेक्षासे दो-दो भंग हैं अतः ४४२-८ भंग हैं। देवनारकी और आहारकके श्वासोच्छ्वासपर्याप्तिकालमें एक-एक भंगकी अपेक्षा ३ भंग हैं। इसप्रकार २८ प्रकृतिकस्थानमें (१२+११५२+८+३) ११७५ भंग जानना।
२९ प्रकृतिक उदयस्थानके शरीरपर्याप्तिकालमें तीर्थङ्करसमुद्घातकेवलीके एक भंग है। उद्योतसहित सज्ञीतिर्यञ्चके पूर्वोक्तप्रकार ६ संस्थान, ६ संहनन, विहायोगति-सुभग-आदेय और यशस्कीर्तियुगलकी अपेक्षा (६x६४२४२४२४२) ५७६ भंग हैं, उद्योतसहित द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असञीके यशस्कीर्ति युगलकी अपेक्षा दो-दो भंग होनेसे आठ भंग हैं तथा उच्छ्वासपर्याप्तिमें निरतिशयसमुद्धातकेवलीके ६ संस्थान एवं विहायोगतियुगलकी अपेक्षासे ६४२-१२ भंग होते हैं। मनुष्यमें और सञ्जीपञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चमें पूर्वोक्तप्रकार ६ संस्थान, ६ संहनन, विहायोगति, सुभग, आदेय
और यशस्कीर्तियुगलकी अपेक्षा (६x६x२x२x२x२) ५७६ +५७६ भंग हैं अतः सर्व ११५२ भंग। उद्योतरहित उच्छ्वासपर्याप्तिकालमें द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय और असञीके यशस्कीर्तियुगलकी अपेक्षा दो-दो भंग होनेसे आठभंग हुए तथा भाषापर्याप्तिकालमें देवनारकी और आहारकके एक-एक भंगकी अपेक्षासे ३ भंग हैं। इसप्रकार २९ प्रकृतिक स्थानमें (१+५७६+८+१२+११५२+८+३) १७६० । भंग हैं।
३० प्रकृतिक स्थानके उच्छ्वासपर्याप्तिकालमें तीर्थंकरसमुद्घातकेवलीके एक भंग है, उद्योतसहित सञ्जीतिर्यञ्चके पूर्वोक्तप्रकार (६४६x२x२x२x२) ५७६ भंग हैं, उद्योतसहित द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रियचतुरिन्द्रिय और असञ्जीपञ्चेन्द्रियके यशस्कीर्तियुगलकी अपेक्षा दो-दो-भंग होनेसे ८ भंग तथा भाषापर्याप्तिकालमें तीर्थंकररहित सामान्यकेवलीके ६ संस्थान, विहायोगति और स्वरयुगलकी अपेक्षा (६x२x२) २४ भंग हैं। मनुष्यमें ६ संस्थान-६ संहनन एवं विहायोगति, सुभग, सुस्वर-आदेय और यशस्कीर्तिरूप पाँचयुगलकी विवक्षा होनेसे (६x६x२x२x२४२४२) ११५२ भंग, उद्योतरहित सीपञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चमें भी इसीप्रकार ६ संस्थान, ६ संहनन एवं विहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय
और यशस्कीर्तियुगल की अपेक्षा ११५२ भंग, द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय और असञीके यशस्कीर्तियुगलकी अपेक्षा दो-दो भंग होनेसे ८ भंग हैं। इसप्रकार ३० प्रकृतिक स्थानमें