Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५४५
अप्रशस्तविहायोगति और दुःस्वरका उदय नहीं है, मात्र सर्वप्रशस्तप्रकृतियोंका ही उदयहोनेसे उससम्बन्धी उदयस्थानोंमें एक-एक ही भंग है।
देवाहारे सत्थं कालवियप्पेसु भंगमाणेज्जो।
वोच्छिण्णं जाणित्ता गुणपांडेवणेसु सम्वेसु ।।६०२ ।। अर्थ - चारप्रकारके देवोंमें व आहारकसहित प्रमत्तगुणस्थानमें प्रशस्तप्रकृतियों का ही उदय है इसकारण उनके सर्वकालमें पाए जानेवाले उदयस्थानोंमें एक-एक भंग है। सासादनसे अयोगीगुणस्थानपर्यन्त जिनप्रकृतियोंकी उदयव्युच्छित्ति हुई है उन प्रकृतियोंको कमकरके अवशेष प्रकृतियोंके भङ्ग यथासम्भव समझ लेने चाहिए।
वीसादीणं भंगा इगिदालपदेसु संभवा कमसो। एक्कं सट्ठी चेव य सत्तावीसं च उगुवीसं ॥६०३।। वीसुत्तरछच्चसया बारस पण्णत्तरीहिं संजुत्ता। एक्कारससयसंखा सत्तरससयाहिया सट्ठी ॥६०४॥ ऊणतीससयाहियएक्कावीसा तदोवि एकट्ठी।
एक्कारससयसहिया एकेक विसरिसगा भंगा ॥६०५॥ अर्थ - बीस प्रकृतिके स्थानको आदि लेकर स्थानोंके भंग गाथा ५१९-२० में कथित ४१ जीवपदोंकी अपेक्षा यथासम्भव क्रम से १-६०-२७-१९-६२०-१२-११७५-१७६०-२९२१ और ११६१ होते हैं। तीर्थंकरसमुद्घातकेवलीका एकभङ्ग है, किन्तु वह पुनरुक्तभंग है अतएव अयोगकेवलीके तीर्थंकरप्रकृतिसहित ९ प्रकृतिका एक और तीर्थंकररहित ८ प्रकृतिका एकभंग, इसप्रकार कुल ७७५८ भंग होते हैं।
विशेषार्थ - २० प्रकृतिका उदय सामान्यसमुद्घातकेवलीके प्रतर-लोकपूरणसम्बन्धी कार्मणकालमें होता है, उसमें एकभंग है । २१ प्रकृतिका उदय देवके विग्रहगतिमें है, उसका एक ही भंग है, तीर्थंकरके समुघातसम्बन्धी कार्मणकालमें एक ही भंग है, मनुष्यके कार्मणकालमें सुभग, आदेययशस्कीर्ति इन तीनयुगलोंमें एक-एक प्रकृतिके उदयसे आठभंग हैं, सञ्जीपञ्चेन्द्रियतिर्यज्ञके कार्मणकालमें भी इसीप्रकार आठभंग हैं, द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय और असञीपञ्चेन्द्रियके कार्मणकालमें यशस्कीर्ति युगलकी अपेक्षा (२४४)- ८ भंग होते हैं, बादर पृथ्वी-जल-तेज-वायु और प्रत्येकवनस्पतिकायके कार्मणकालमें भी यशस्कीर्तियुगलकी अपेक्षा (२४५) १० भंग हैं। सूक्ष्मपृथ्वीजल