Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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पूर्वोक्त २० प्रकृतियोंमें तीर्थङ्करप्रकृति मिलानेसे २१ प्रकृतिक स्थान होता है। २० प्रकृतियों में वज्रर्षभनाराचसंहनने, प्रत्येक औदारिकद्रिक, अधात, ६ संस्थानों से कोई एकसंस्थान, इन छह प्रकृतियोंके मिलानेसे कपाटसमुद्घातकेवलोके २६ प्रकृतिकस्थान होता है।
२६ प्रकृतिक स्थानमें तीर्थक्करप्रकृति मिलानेसे २७ प्रकृतिकस्थान होता है, किन्तु यहाँ पर मात्र समचतुरस्रसंस्थानका उदय है।
२६ प्रकृतियोंमें परघात तथा एक विहायोगति मिलानेसे २८, प्रकृतिक स्थान होता है।
णामस्स य णव उदया अट्टेव य तित्थहीणेसु ॥५९८ ॥
गयजोगस्स य बारे तदियाउगगोद इदि विहीणेसु। आगे अयोगीगुणस्थानसम्बन्थी नामकर्मके दो उदयस्थानोंका स्पष्टीकरण करते हैं
निर्माण बादर
आदेय सुभा यशस्कीर्ति स्थिरास्थिर
शुभाशुभ |अगुरुलघु वर्णादि पंचेन्द्रियजाति १ तैजसशरीर पर्याप्त कार्मणशरीर १ मनुष्यगति
४ १ १
१ प्रतर व लोकपूरण २१ | २६ । २७ में २० प्रकृतिक प्रकृ. | प्रकृतिक प्रकृतिक प्रकृ.| प्रकृतिक प्रकृतिक प्रकृतिक प्रकृतिक प्रकृतिक
२८ "केवलीके नामकर्मसम्बन्धी उदयस्थानोंकी सन्दृष्टि"
२९ । ३० । ३१ । ।
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५४३
२७ प्रकृतिक स्थानमें परघात तथा प्रशस्त बिहायोगति मिलानेसे तीर्थङ्करके २९ प्रकृतिकस्थान होता है। २४ प्रकृतिकस्थानमें उच्छ्वास मिलानेसे भी सामान्यकेचतीके २९ प्रकृतिक स्थान होता है। सामान्य केवलीके २९ प्रकृतिक स्थानमें एक स्वर मिलानेसे ३० प्रकृतिक स्थान होता है। तीर्थकरकेवली के २९ प्रकृतिक स्थानमें उच्छ्वास मिलानेसे भी ३० प्रकृतिक स्थान होना है।
तीर्थङ्करकेवलो के ३० प्रकृतिक स्थानमें सुस्त्वर मिलाने से ३१ प्रकृतिक स्थान होता है।
सामान्य अयोगकेवलोके मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रियजाति, सुभग, स, बाटर, पर्याप्त, आदेय और यशस्क्रीति :
तीर्थ र अयोगीक पूर्वोक्त आठप्रकृतिकरस्थान में तीर्थङ्करप्रकृति मिलानेसे । प्रकृतिक उदयस्थान होता है।