Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गति
निर्माण जाति यश.-अयश. १ आदेय-अनादेय १ सुभग-दुभंग शुभ-अशुभ स्थिर-अस्थिर २ पर्याप्त-अपर्याप्त १ बादर-सूक्ष्म १ त्रस-स्थावर अगुरुलघु वर्णचतुष्क तैजस-कार्पण २
१ १ २ १ १ ४
आनुपूर्वी
२४ प्रकृतिक उदयस्थान २१ प्रकृतिमेंसे आनुपूर्वी कम करके औदारिक-शरीर, टकसंस्थान, उपघात तथा में प्रत्येक व साधारणमेंसे कोई एक, इसप्रकार ४ प्रकृति मिलाने से बनता है।
देव-नारकी के २१-१ आनुपूर्वी=२०+वैक्रि.द्विक संस्थान+उपघात+प्रत्येक शरीर २५ आहा.शरीरो प्रमत्तसंयतके २०५ आहारकट्टिक+संस्थान+उपघात+प्रत्येक शरीर = २५ एकेन्द्रियके - शरोरपर्याप्ति पूर्ण होनेपर २४ + परयात = २५
नोट : यह सन्दृष्टि प्राकृत पंचसंग्रहके आधारसे बनाई गई है।
एकेन्द्रियके २+उन्छ्वास २६ । २४. परधात+आतप या उद्योत=२६ । मनुष्य व वसतिर्यञ्च के २१-आनुपूर्वी २०+औदारिकदिक+संस्थान + उपघात+ संहनन + प्रत्येकशरीर = २८
उदयस्थान २१ प्रकृतिक | २४ प्रकृतिक |२५ प्रकृतिक|२६ प्रकृतिक
| प्रकृतिक प्रकृतिक प्रकृतिक प्रकृतिक प्रकृतिक |
मनुष्य - २४ प्रकृतिकस्थान बिना शेष सर्वस्थान । तिर्यञ्च - २१-२४-२५-२६-२७-२८-२९-३० व ३५ प्रकृतिक। देव-नारकी – २१-२५-२७-२८ व २९ प्रकृतिक। २०-२१-२४-२५-२६-२७-२८-२९-३०-३१-९ व ८ प्रकृतिक ।
"नामकर्मके उदग्रस्थान"
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५४२
आतप या उद्योतसहित एकेन्द्रिग्रके २६+उच्छ्वास = २७/ शरीरपर्यामिसे पर्याप्त देव-नारकी व आहारकशरोरीके २५+विहायोगति+परघात - २७।
देव-नारकी व आहारकशरीरीके २७+उच्छ्वास = २८ । मनुष्य व त्रसतिबंञ्चके २६+परयात+बिहायोगति= २८.1 शरीरमांन उद्योतसहित तिर्यञ्च के २६ +परघात + विहायोगति + उद्योत-२९। मनुष्य ने सतिथंच के २८+उच्छ्वास = २९। देव-नारकी व आहारकपारीरीक २८+स्वर = २९। उद्योतसहित तिर्यञ्च के २९ +उच्च्वास = ३०। मनुष्य व त्रसतिर्यञ्चके २९+स्वर = ३०। उद्योतसहित असतिर्यञ्च के ३० +स्वर = ३१| तीर्थयारसहित मनुष्य के ३० + तीर्थकर = ३१॥