Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ५४०
हैं, तथैव पञ्चेन्द्रिय और विकलेन्द्रियनिर्यञ्होंके उदयगोग्य २१-२६- २८-२९-३० और ३१ प्रकृतिरूप ऐसे ६ स्थान हैं। देव नारकी - आहारक और केवलीसहित विशेष मनुष्योंके २१, २५ तथा २७ प्रकृतिके तीनस्थान उदययोग्य हैं। कार्मणकालमें समुद्धात केवलीके २० प्रकृतिरूप उदयस्थान है, क्योंकि यहाँ तीर्थङ्करप्रकृतिका उदय नहीं है तथा तीर्थरसमुद्घातकेवलीके २० प्रकृतिक स्थानमें तीर्थङ्करप्रकृतिके मिलनेसे २१ प्रकृतिक स्थान तथा भाषापर्याप्ति पूर्ण होनेपर ३१ प्रकृतिक स्थान भी उदययोग्य है । विग्रहगतिके कार्मणकालमें २१ प्रकृतिक स्थान होता है, मिश्रशरीर कालमें २४-२५-२६ व २७ प्रकृतिरूप चारस्थान, शरीर पर्याप्तकालमें २५-२६-२७-२८ व २९ प्रकृतिक पाँचस्थान, श्वासोच्छ्वासपर्याप्तिकालमें २६-२७-२८-२९ व ३० प्रकृतिक पाँचस्थान, भाषापर्यासिकालमें २९ ३० व ३१ प्रकृतिरूप तीनस्थान उदययोग्य हैं। अयोगी गुणस्थानमें तीर्थङ्करकेबलीके ९ प्रकृतिक और सामान्यकेवलीके ८ प्रकृतिक ऐसे at उदयस्थान हैं।
नामकर्मके उदयस्थान व उनके स्वामीका कथन एक दृष्टि में२० प्रकृतिरूप एकस्थान - समुद्घातकेवलीके कार्मणकालमें उदययोग्य है । २१ प्रकृतिक दोस्थान
२४ प्रकृतिक एकस्थान २५ प्रकृतिक तीन स्थान
२६ प्रकृतिक तीनस्थान
२७ प्रकृतिक चारस्थान
२८ प्रकृतिक तीन स्थान
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२९ प्रकृतिक छहस्थान
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चारोंगतिसम्बन्धी विग्रहगतिमें और तीर्थङ्करकेवलीके कार्मणकालमें उदययोग्य है ।
एकेन्द्रियके मिश्रशरीरकालमें उदययोग्य है।
एकेन्द्रियके शरीरपर्याप्तिकालमें, आहारकके शरीर मिश्रकालमें और देवनारकीके भी शरीर मिश्रकालमें उदययोग्य है ।
एकेन्द्रियके शरीरपर्याप्तिकालमें, एकेन्द्रियके उच्छ्वासपर्याप्तिकालमें, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय, सामान्यमनुष्य और निरतिशयकेवलीके औदारिकमिश्रकालमें उदययोग्य ।
आहारकके शरीरपर्याप्तिकालमें, तीर्थङ्करसमुद्घातकेवलीके औदारिकशरीर मिश्रकालमें, देव नारकीके शरीरपर्याप्तिकालमें और एके न्द्रियके उच्छ्वासपर्याप्तिकालमें उदययोग्य है।
सामान्यमनुष्य - सामान्यकेवली द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय- चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय के शरीरपर्याप्सिकालमें तथा देव नारकी व आहारकशरीरवालेके उच्छ्वास पर्याप्तिकालमें उदययोग्य है।
समुद्घात के वलीके उच्छ्वासपर्यामिमें, द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय- चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रियके शरीरपर्याप्तिकालमें, द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रियके