Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ५३८
उदययोग्य २५ प्रकृतिक स्थान है अथवा वैक्रियक अंगोपांग मिलानेसे देव और नारकीके मिश्रकालमें उदययोग्य २५ प्रकृतिकस्थान हैं, इसप्रकार २५ प्रकृतिके तीनस्थान हैं। एकेंद्रियके उदययोग्य २५ प्रकृतिक स्थानमें आतप व उद्योतमेंसेएक प्रकृतिको मिलानेपर एकेंद्रियके शरीरपर्याप्तिमें उदययोग्य २६ प्रकृतिक स्थान होता है। उस एकेंद्रिय २५ प्रकृतिकस्थानमें उच्छ्वास मिलानेपर एकेंद्रिय के श्वासोच्छ्वासपर्याप्तिमें उदययोग्य २६ प्रकृतिकस्थान होता है अथवा २४ प्रकृतिक स्थानमें औदारिक अङ्गोपाङ्ग और एक संहनन मिलानेसे द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय, सामान्यमनुष्य व निरतिशयकेवीके कपाटयुगलके औदारिक्रमिश्रकालमें उदययोग्य २६ प्रकृतिका स्थान है। इसप्रकार २६ प्रकृतिके तीनस्थान जानना । २४ प्रकृतिक स्थानमें आहारक अंगोपांग, परघात और प्रशस्तविहायोगति इन तीनप्रकृतिको मिलानेपर प्रमत्तगुणस्थानमें आहारकशरीरपर्याप्ति होनेपर उदययोग्य २७ प्रकृतिक स्थान है अथवा समुद्घातकेवलीके पूर्वोक्त २६ प्रकृतिक स्थानमें तीर्थङ्करप्रकृतिके मिलानेपर तीर्थकर समुद्घातकेवीके उदययोग्य २७ प्रकृतिरूप स्थान होता है अथवा पूर्वोक्त २४ प्रकृतिक स्थानमें वैक्रिक अंगोपांग, परघात और नारकीके अप्रशस्तविहायोगति तथा देवके प्रशस्तविहायोगति इसप्रकार तीनप्रकृतिके मिलने से देव और नारकी के शरीरपर्याप्ति होनेपर उदययोग्य २७ प्रकृतिका स्थान है अथवा पूर्वोक्त २४ प्रकृतिकस्थानमें परघात तथा आप उनमें से एक और उच्छ्वास ये तीन प्रकृति मिलनेसे एकेंद्रिय के उच्छ्वासपर्याप्ति में उदययोग्य २७ प्रकृतिक स्थान है, इसप्रकार २७ प्रकृतिक चारस्थान हैं । २४ प्रकृतियोंमें औदारिक अंगोपांग, एकसंहनन, परघात और यथायोग्य विहायोगति इन चारप्रकृतिके मिलानेपर सामान्यमनुष्य या मूलशरीर में प्रवेश करते हुए समुद्घातरूप सामान्यकेवली अथवा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चके शरीरपर्याप्तिकालमें उदययोग्य २८ प्रकृतिक स्थान है तथा उपर्युक्त २४ प्रकृतिमें ही आहारक अंगोपांग, परघात, प्रशस्तविहायोगति और उच्छ्वास इन चारको मिलानेपर उच्छ्वासपर्याप्तिमें उदययोग्य २८ प्रकृतिकस्थान है अथवा २४ प्रकृतियों में वैक्रियक अंगोपांग, परघात, यथासम्भव विहायोगति एवं उच्छ्वासप्रकृति मिलानेपर देव और नारकी के उच्छ्वासपर्याप्तिमें उदययोग्य २८ प्रकृतिक स्थान है। इसप्रकार २८ प्रकृतिरूप तीनस्थान जानना ।
सामान्यमनुष्य या समुद्घातकेवलीके २८ प्रकृतिरूप स्थानमें उच्छ्वासप्रकृति मिलानेपर सामान्यमनुष्य या मूलशरीरमें प्रवेश करते हुए समुद्घातकेवलीके उच्छ्वासपर्याप्ति २९ प्रकृतिकस्थान है अथवा २४ प्रकृतिरूप स्थानमें औदारिक अंगोपांग, एक संहनन, परघात, एकविहायोगति एवं उद्योत प्रकृति मिलानेसे द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चके शरीरपर्याप्ति में उदययोग्य २९ प्रकृतिक स्थान है अथवा २४ प्रकृतिक स्थानमें एक अंगोपांग, एक्संहनन, एकनिहायोगति, परघात और उच्छ्वासप्रकृति मिलानेसे द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चके उच्छ्वासपर्याप्ति में उदययोग्य २९ प्रकृतिक स्थान है अथवा २४ प्रकृतिक स्थानमें औदारिक अंगोपांग, संहनन, परधात, प्रशस्तविहायोगति और तीर्थङ्करप्रकृति मिलानेपर समुद्घाततीर्थङ्करकेवली के शरीरपर्याप्तिमें उदययोग्य २९