Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५३९
प्रकृतिक स्थान है अथवा २४ प्रकृतिक स्थानमें आहारकअङ्गोपाङ्ग, परधात, प्रशस्तविहायोगति, उच्छ्वास
और सुस्वर मिलानेते प्रयतणावाका सहकारीरसम्बन्धी भाषापर्याप्तिमें उदययोग्य २९ प्रकृतिकस्थान है तथा देव व नारकीके २८ प्रकृतिक स्थानमें देवके सुस्वर और नारकीके दुःस्वरप्रकृति मिलानेपर देव-नारकीके भाषापर्याप्तिमें उदययोग्य २९ प्रकृतिक स्थान है। इसप्रकार २९ प्रकृतिके छहस्थान हुए। तथैव २४ प्रकृतिकस्थानमें अंगोपांग, संहनन, परघात, विहायोगति और उच्छ्वासप्रकृति मिलाने पर २९ प्रकृति होती हैं तथा इनमें उद्योतप्रकृति मिलानेपर द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चके उच्छ्वासपर्याप्तिमें उदययोग्य ३० प्रकृतिक स्थान है अथवा इन्हीं २९ प्रकृतिमें दो स्वरमें से एकके मिलानेपर सामान्यमनुष्य, पञ्चेन्द्रिय या विकलत्रयके भाषापर्याप्लिमें उदययोग्य ३० प्रकृतिक स्थान है अथवा २४ प्रकृतिमें औदारिकअंगोपांग, वज्रर्षभनाराचसंहनन, परघात, प्रशस्तविहायोगति
और उच्छ्वासप्रकृति मिलाने पर. २९ प्रकृति होती हैं, इनमें तीर्थङ्करप्रकृति मिलाने से समुद्घाततीर्थकरकेवलीके उच्छ्वासपर्याप्तिमें उदययोग्य ३० प्रकृतिक स्थान है। इन्हीं उपर्युक्त २९ प्रकृतियोंमें सुस्वर व दुःस्वररूप दोस्वरोंमें से कोई एकस्वर मिलानेपर सामान्यसमुद्घातकेवलीके भाषापर्याप्तिमें उदययोग्य ३० प्रकृतिक स्थान है। इसप्रकार ३० प्रकृतिके चारस्थान जानना।
सामान्यसयोगकेवलीकी भाषापर्याप्तिसम्बन्धी ३० प्रकृतियोंमें तीर्थङ्करप्रकृति मिलानेपर तीर्थङ्करकेवलीके भाषापर्याप्तिमें उदययोग्य ३१ प्रकृतिक स्थान है अथवा २४ प्रकृतिक स्थानमें कोई एक अंगोपांग, कोई एक संहनन, परघात, उद्योत, कोई एकविहायोगति, उच्छ्वास और सुस्वर-दुःस्वरमें से कोई एक इसप्रकार सातप्रकृति मिलानेपर द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चके भाषापर्याप्तिमें उदययोग्य ३१ प्रकृतियाँ हैं ऐसे ३१ प्रकृतिरूप दोस्थान जानना। इसप्रकार एक जीवके एककालमें होनेवाले उदयस्थानोंका कथन किया।
एगे इगिवीसपणं इगिछठवीसट्ठवीसतिण्णि गरे। सयले वियलेवि तहा इगितीसं चावि वचिठाणे ।।५९५ ॥ सुरणिरयविसेसणरे इगिपणसगवीसतिण्णि समुग्घादे। मणुसं वा इगिवीसे वीसं रूवाहियं तित्थं ॥५९६ ।। वीसदु चउवीसचऊ पणछव्वीसादिपंचयं दोसु ।
उगुतीसति पणकाले गयजोगे होति णव अदृ॥५९७ ।। विसेसयं ।। अर्थ - पूर्वोक्त पाँचकालोंमें यथासम्भव क्रमसे एकेन्द्रियके उदययोग्य स्थान २१-२४-२५२६-२७ प्रकृतिके पाँचस्थान हैं, मनुष्यके उदययोग्य २१-२६ और २८-२९-३० प्रकृति के पाँचस्थान