Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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मोम्मटसार कर्मकाण्ड-५३०
प्रमत्तगुणस्थानमें जाकर तीर्थंकरप्रकृतिका बन्ध प्रारम्भ करके तीर्थङ्कर व देवगतिसहित २९ प्रकृतिके ३. स्थानको आठ मजसहित बाधन लगा, इन दोनोंक भङ्गोंको परस्पर गुणा करनेसे ८x१८ भंग हुए तथा
प्रमत्तगुणस्थानवर्ती ८ भंगसहित देवयुक्त २८ प्रकृतिको बाँधता था, पीछे अप्रमत्त होकर आहारकद्विकसंयुक्त ३० प्रकृति के स्थानको एकभंगसहित बाँधता है इसप्रकार ८x१८ भंग हुए तथा प्रमत्तगुणस्थानीय ८ भंगसहित २८ प्रकृतिको बाँधता था पश्चात् अप्रमत्तमें आकर तीर्थंकर और आहारकद्विकसहित ३१ प्रकृतिके स्थानको एकभंगसहित बाँधता है इसप्रकार ८४१८ भंग हुए। अप्रमत्तगुणस्थानवी तीर्थंकर व देवगतिसंयुक्त २९ प्रकृतिक स्थानको एकभंग सहित बाँधता था मरण करके देव असंयत हुआ वहाँ ८ भंगसहित मनुष्य व तीर्थंकरसंयुक्त ३० प्रकृतिको बाँधने लगा इसप्रकार ये ८x१८ भंग हुए। प्रमत्तगुणस्थानवर्तीमनुष्य देवगति एवं तीर्थंकरसहित २९ प्रकृतिक स्थानको ८ भंगसहित बाँधता था पुनः अप्रमत्तगुणस्थानमें आकर तीर्थंकर व आहारकद्विकसंयुक्त ३१ प्रकृतिरूप स्थानको एकभंगसहित बाँधने लगा, इसप्रकार ८x१८ भंग हुए।
तथैव अप्रमत्तगुणस्थानवर्ती एकभंगसंयुक्त आहारकद्विकसहित ३० प्रकृतिरूप स्थानका बन्ध करता था पश्चात् उसी गुणस्थानमें तीर्थंकरप्रकृतिके बन्धका प्रारम्भ करके ३१ प्रकृतिरूप स्थानको बाँधने लगा इसप्रकार एकभंग जानना तथा उपशमश्रेणीसे उतरनेवाला अपूर्वकरणगुणस्थानके सप्तमभागमें एकभंगसहित यशस्कीर्तिप्रकृतिको बाँधता था, फिर नीचे अपूर्वकरणके छठेभागमें आकर देवगतिसंयुक्त २८ प्रकृतिके स्थानको, देवतीर्थकरयुत २९ प्रकृतिकस्थान या देव-आहारकद्रिकसहित ३० प्रकृतिको अथवा देवआहारकद्विक-तीर्थंकरसहित ३१ प्रकृतिरूप स्थानको एकभंगसहित बाँधे, इसप्रकार इनके चार भंग हुए। ये सर्व ४५ भुजकारभंग जानना।
सन्दृष्टि
प्रमत्त
अप्रमत्त | अप्रमत | असंवत- | अप्रमत्त | अप्रमत्त | अपू. | अपू.| अपू. | अपू.
देव
२१ । ३० । ३१ । ३० ३१ ३१ । २८ | २९ | ३० | ३१ | अप्रमत्त ८ १ १ ८ १ १ १ | १ | १ | १ | गुणस्थानवर्तियोंके
४५ भुज. अप्रमत्त | प्रमत्त | प्रमत्त । अप्रमत्त | प्रमत्त | अप्रमत्त | अपू. | अपू. | अपू. | अपू. |
| २८ । २१ ।२९
२८
।
30
१४८ ८४१ ८४१ १४८ ८४१ १४१ १४१ १४१ १४१ १४१ ८+ ८+ ८+ ८+ ८+ १+ १+ १+ १+ १ = ४५