Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५३१ अथानन्तर अप्रमत्तगुणस्थानके अल्पतरभंगोंको कहते हैं.....:. इशिदिहि मिगिखडसीसे दस णव णवडधियवीसमट्ठविहं ।
देवचउक्केकेक्के अपमत्तप्पदरछत्तीसा ॥५७८ ॥ अर्थ- एक-एक भंगसहित एक, एक, शून्य, शून्यसे अधिक ३० अर्थात् ३१-३१, ३० और ३० प्रकृतिक स्थानोंको बाँधता हुआ ८-८ भंगोंसे संयुक्त १०-९-९ और ८ से अधिक २० अर्थात् ३०, २९, २९ और २८ प्रकृतिरूप स्थानोंको तथा एक-एक भंगसहित देवगतिसंयुक्त चारस्थानोंको बाँधता है। इसप्रकार अप्रमत्तगुणस्थानमें ३६ अल्पतरभङ्ग होते हैं।
विशेषार्थ- अप्रमत्तगुणस्थानवर्तीजीव देवगति, आहारकद्विक व तीर्थंकरसहित ३१ प्रकृतिकस्थानको एक भंगसंयुक्त बाँधता था पुन: मरणकर देवअसंयत हुआ वहाँ ८ भंगोंसे संयुक्त मनुष्य-तीर्थंकरसहित ३० प्रकृतिको बाँधने लगा अतः १४८८ भंग । अप्रमत्तगुणस्थानमें एक भंगसहित ३१ प्रकृतिका बन्ध करता था पश्चात् प्रमत्तगुणस्थानमें आकर देव और तीर्थंकरसहित आठ भंगोंसे युक्त २९ प्रकृतिको बाँधने लगा अतः १४८-८ भंग। अप्रमत्तगुणस्थानमें देव और आहारकद्विकसहित ३० प्रकृतिको एकभंगसहित बाँधता था वह मरणकर देवअसंयत हुआ और वहाँ मनुष्यगतिसहित २९ प्रतिस्थानको ८ भंगसंयुक्त बाँधने लगा इसप्रकार १४८८ भंग। अप्रमत्तगुणस्थानमें एक भंगसहित आहारक व देवगतियुत ३० प्रकृतिको बाँधता था पश्चात् प्रमत्तगुणस्थानमें आकर ८ भंगसहित देवगतिसंयुक्त २८ प्रकृतिको बाँधने लगा इसप्रकार १४८८ भंग हुए। अपूर्वकरणगुणस्थानमें चढ़तेसमय छठेभागमें एक-एक भंगसहित देवगतिसंयुक्त २८ प्रकृतिको तथा देवगति-तीर्थंकरसहित २९, देव व आहारकद्विकसहित ३० एवं देव-आहारकद्विक और तीर्थंकरयुत ३१ प्रकृतिको बाँधता हुआ सप्तमभागमें एकभंगसहित एकप्रकृतिरूप स्थानको बाँधता है। अतः ये चारभंग हुए। इसप्रकार सर्वअल्पतरभंग ३६ जानना।
सन्दृष्टिअसंयतदेव | प्रमत्त । असंयतदेव प्रमत्त | अपूर्व. अपूर्व. | अपूर्व. | अपूर्व. प्रकृ. ३० | २९
२८ । भङ्ग ८ | अप्रमत्त अप्रमत्त | अप्रमत्त । अप्रमत्त अपूर्व. | अपूर्व, | अपूर्व. | अपूर्व. प्रकृ. ३१ । ३१
३० । २८ भङ्ग १
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