Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ५३३
सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थानमें आकर एकप्रकृतिक स्थानको बाँधता है अतः १ भंग तो यह तथा मरणकर देव असंयत होनेपर आठ-आठ भंगोसहित मनुष्यगतिसंयुक्त २९ प्रकृतिरूप स्थानको तथा तीर्थकर व मनुष्यगतिसंयुक्त ३० प्रकृतिक स्थानको बाँधे अतः इन दोनों स्थानसम्बन्धी १६ भंग हुए । इसप्रकार अवक्तव्य बन्धके १+१६ = १७ भंग जानना तथा द्वितीयादिक समयमें भी उन्हींके समान बन्ध होता है। अतः अवस्थितबन्ध उतने ही जानने ।
अवक्तव्यभंगों की सन्दृष्टि
सूक्ष्म सा. गुण.
प्रकृति १
भङ्ग १
उपशांतकषाय
गुणस्थान
प्रकृति
ਅਜ
}.
देव असंयत गुण.
२९
८
उपशांतकषाय
गुणस्थान
देवअसंयत गुण.
३०
८
उपशांतकषाय
गुणस्थान
भुजगारे अप्पदरेऽवत्तव्वे ठाइदूण समबंधो।
होदि अवदिबंधो तब्भंगा तस्स भंगा हु ।। ५८२ ।।
अर्थ - भुजकार, अल्पतर और अवक्तव्यभंगोको स्थापन करके जिन-जिन भंगों से सहित प्रकृतियोंका एकसमयमें बन्ध होता है उन्हीं भंगोंके साथ उन प्रकृतियोंका द्वितीयादिक समयमें भी जहाँ समान बन्ध हो उसे अवस्थित बन्ध कहते हैं अतः भुजकारादि तीन प्रकारके बन्धोंके जितने भंग हैं उतने ही अवस्थितबन्धके भंग हैं।