Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटप्सार कर्मकाण्ड-५११ देवगति सहित २८ प्रकृतिक, तिर्यंचमनुष्यगतिसहित २९ प्रकृतिक एवं तिर्यञ्च-उद्योतयुत ३० प्रकृतिक ऐसे तीन स्थान है) आनतादिस्वर्ग से उपरिमौवेयकपर्यन्त पर्याप्त-अपर्याप्तदेव मनुष्यगतियुत २९ प्रकृतिरूप स्थानको ही बाँधते हैं तथा अनुदिश व अनुत्तरविमानोंमें सासादनगुणस्थान नहीं होता, क्योंकि उनमें सम्यग्दृष्टिदेव ही उत्पन्न होते हैं। मिश्रगुणस्थानवर्तीके २८-२९ प्रकृतिरूप दो बन्धस्थान हैं यहाँ पर्याप्तदेव तथा नारकियोंमें मनुष्ययुत २९ प्रकृतिक स्थानका एवं तिर्यञ्च व मनुष्योंमें देवगतियुत २८ प्रकृतिक स्थानका बध होता है। अनुदिश व अनुत्तरविमानोंमें मिश्रगुणस्थान नहीं है। मिथ्यात्वगुणस्थानवर्ती जीवों में कृष्णलेश्यावत् २३-२५-२६-२८-२९ और ३० प्रकृतिरूप छहस्थान हैं। आदिकी छह पृश्चियोंमें निर्वृत्त्यपर्याप्तक और पर्याप्तनारकीके तिर्यञ्च तथा मनुष्यगतियुत २९-३० प्रकृतिरूप दो स्थानोंका बन्ध है। सप्तम पृथ्वीमें तिर्यञ्चगतियुत २९-३० प्रकृतिरूप दो स्थान बँधते है ।
तिर्यञ्चगतिमें लब्ध्यपर्याप्तक-निर्वृत्त्यपर्यातक बादर-सूक्ष्मपृथ्वी-अप-तेज-वायु-काय, साधारणप्रत्येकवनस्पति, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असैनी-सैनी तिर्यञ्च और मनुष्यमै २८ प्रकृतिरूप स्थारके बिना २३-२५-२६-२९-३० प्रकृतिक ५ बन्धस्थान हैं।
नोट- तेजकाय और वायुकायमें मनुष्यगतियुत २५ व २९ प्रकृतिके बन्धस्थान नहीं हैं। पर्याप्त असञी-सञ्जी पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च व मनुष्यके २३-२५-२६-२८-२९ और ३० प्रकृतिरूप छहस्थान बंधते हैं तथा लब्ध्यपर्याप्तक-निर्वृत्त्यपर्याप्तक मनुष्योंमें २८ प्रकृतिरूप स्थान के बिना शेष २३-२५-२६२९ व ३० प्रकृतिरूप ५ स्थान बँधते हैं। देवगतिमें निवृत्त्यपर्याप्त व पर्याप्तावस्थामें भवनत्रिकादिसे ईशानस्वर्गपर्यन्त तो २५-२६-२९ और. ३० प्रकृतिरूप चारस्थान बँधते हैं एवं सनत्कुमारस्वर्गसे सहस्रारस्वर्गपर्यन्त २९-३० प्रकृतिक दोस्थान बँधते हैं। आनतादि स्वर्गसे उपरिमग्नैवेयकपर्यन्त २९ प्रकृतिरूप एकही बन्धस्थान है, क्योंकि यहाँ तिर्यञ्चगतिका बन्ध नहीं होता है। अनुदिश व अनुत्तरविमानोंमें मिथ्यादृष्टि नहीं है।
सञी और आहारमार्गणामें नामकर्मके सभी बन्धस्थान हैं। असंज्ञी व अनाहारकमार्गणामें २३-२५-२६-२८-२९ और ३० प्रकृतिरूप छह बन्धस्थान है। सङ्घीनारकीके तो २९-३० प्रकृतिरूप दो स्थान तथा तिर्यञ्चमें तीर्थङ्कर व आहारकयुगलयुत स्थान बिना २३, २५, २६, २८, २९, ३० प्रकृतिक छहस्थान हैं, मनुष्यमें २३-२५-२६-२८-२९-३०-३१ और १ प्रकृतिक इसप्रकार सर्वस्थान हैं तथा देवोंमें २८ प्रकृतिक स्थानके बिना २५-२६-२९-३० प्रकृतिके चारस्थान हैं। असञीमार्गणामें लब्ध्यपर्याप्त-निर्वृत्त्यपर्याप्त-पर्याप्तबादर-सूक्ष्मपृथ्वी-अप्-तेज-वायुकाय-साधारण-प्रत्येक-वनस्पतिकायदीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय में तीर्थकर व आहारकयुगलसहित स्थानके बिना २३. २५, २६, २८, २९, ३० प्रकृतिक छहस्थान हैं।
आहारमार्गणा सानत्कुमारसे उपरिमग्रैवेयकपर्यन्तदेव व नरकम २९ व ३० प्रकृतिक दो स्थान,