Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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भव्य
सम्यक्त्व
सञ्ज्ञी
आहार
하여
अभव्य
उपशम व क्षायिक
वेदसम्यक्त्व
सम्यग्मिथ्यात्व
सासादन
मिथ्यात्व
सञ्ज्ञी
असी
आहारक
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५१४
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अनाहारक
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५
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२३-२५-२६-२८-२९-३०-३१ व १ प्रकृतिक । २३-२५-२६-२८-२९ व ३० प्रकृतिक
२८-२९-३०-३१ च १ प्रकृतिक ।
२८-२९-३० व ३१ प्रकृतिक ।
२८ व २९ प्रकृतिक |
२८-२९ व ३० प्रकृतिक ।
२३-२५-२६-२८-२९ व ३० प्रकृतिक । AATRIA
२३-२५-२६-२८-२९-३०-३१ व १ प्रकृतिक
२३-२५-२६-२८-२९ व ३० प्रकृतिक ।
२३-२५-२६-२८ २९ ३० ३१ व १ प्रकृतिक
२३-२५-२६-२८-२९ व ३० प्रकृतिक ।
अथानन्तर नामकर्मके बन्धस्थानोंमें पुनरुक्त भङ्गोंको कहते हैंणिरयादिजुदट्टाणे, भंगेणप्पप्पणम्मि ठाणम्मि । ठविदूणमिच्छभंगे, सासणभंगा हु अत्थित्ति ।। ५५२ ।।
अविरदभंगे मिस्सयदेसपमत्ताण सव्वभंगा हु । अत्थित्तितेदु अवणिय, मिच्छाविरदापमादेसु ॥ ५५३ ॥ जुम्मं ॥
अर्थ - नरकादिगतिसहित स्थानोंको अपने-अपने भोंके साथ अपने-अपने गुणस्थानोंमें स्थापित करना इनमें मिथ्यादृष्टिके स्थानोंके भन्नों में सासादन के बन्धस्थानों के भंग गर्भित हैं और असंयत के बन्धस्थानों के भक्तों में मिश्र - देशसंयत व प्रमत्तगुणस्थानसम्बन्धी बन्धस्थानों के भङ्ग गर्भित हैं, क्योंकि इनके भक्तोंमें परस्पर समानता पाई जाती है इसलिये मिध्यादृष्टि के भङ्गों में से सासादन गुणस्थानके भङ्गको घटाकर और असंयत के भङ्गों में से मिश्र, देशसंयत व प्रमत्तगुणस्थानके भङ्ग घटाकर मिथ्यादृष्टि असंयत तथा अप्रमत्तगुणस्थान में बन्धस्थानोंके भन होते हैं।
विशेषार्थ - यहाँ मिथ्यात्वगुणस्थानमें नरकयुत २८ प्रकृतिके स्थानमें एक भङ्ग है। तिर्यञ्चगतियुत २३ प्रकृतिके स्थान में एक, २५ प्रकृतिके स्थानमें आठ, २६ प्रकृतिके स्थानमें आठ, २९ प्रकृतिरूपस्थानमें