Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ५२६
'७०+११=८१ प्रमाण फलराशि को इच्छाराशि ३२ से गुणा करनेपर और प्रमाणराशि १ से भाग देनेपर ८१×३२÷१=२५९२ प्रमाण छब्बीसप्रकृतिरूप स्थानके अल्पतरभेद जानना । पुनश्च २५ प्रकृतिका बन्ध करके पश्चात् २३ प्रकृतिका बन्ध करने लगा सो यह अल्पतरबन्ध है । २५ प्रकृतिरूप स्थानके १ भंगका बन्ध करके २३ प्रकृतिके सर्वभंगों को बाँधता है तो २५ प्रकृतिके ७० भंगोंको बाँधते हुए कितने भंगोंको बाँधेगा? इसप्रकार त्रैराशिक करनेपर प्रमाणराशि तो पच्चीस प्रकृतिका एक भेद, फलराशि २३ प्रकृतिरूप स्थानके ११ भंग तथा इच्छाराशि पच्चीसप्रकृतिके ७० भंग । यहाँ फलराशि ११ को इच्छाराशि ७० गुणाकर प्रमाणराशि १ का भाग देनेसे १९७० : १= ७७० प्रमाण २५ प्रकृतिरूप स्थानके अल्पतर भेद हुए ।
अब पूर्वमें कथित शेषको वैपकिरिया संक्षेम जानकी विधि कहते हैं
लघुकरणं इच्छंतो एयारादीहिं उवरिमं जोग्गं ।
संगुणिदे भुजगारा उवरीदो होंति अप्पदरा ॥ ५७० ॥
अर्थ- जो व्यक्ति संक्षेपसे जानना चाहता है उसे समझाना है कि ११ आदि अजोंसे आगेके सर्वभेदोंक जोड़कर गुणा करनेपर तो भुजकारन्नन्धके भंगों का प्रमाण आता है तथा ३० आदि प्रकृतिरूप स्थानोंके भंगोंसे २९ आदि सर्वप्रकृतिरूप अन्धस्थानों के भंगोंको जोड़कर गुणा करनेपर अल्पतरबन्धके भंगोका प्रमाण निकलता है।
विशेषार्थ - अल्पतर भंगोंकी तथा भुजकार भंगोंकी सन्दृष्टि निम्न प्रकार जानना ।
अल्पतरभंगों की सन्दृष्टि
प्रकृतिरूप
स्थान
३०
२९
२८
२६
२५
गुण्य
९३७०
१२२
११३
८१
११
गुणाकार
४६४०
९२४८
९
३२
७०
लब्ध
४,३४,७६,८००
११,२८,२५६
१०१७
२५९२
७७०