Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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... गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५२७ भुजकारभगोंकी सन्दृष्टि
प्रकृतिरूप स्थान
गुणाकार
१,५३,९८९
९,७६,०३०
१३,९९९ १३,९२९ १३,८९७ १३,८८८
४६४०
४,४२,७०४
१.२४.९९२
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९२४८
४,२९,१०,७२०
अब अवस्थितभङ्गोंकी संख्या कितनी होती है सो कहते हैं
भुजगारप्पदराणं भंगसमासो समो हु मिच्छस्स ।
पणतीसं चउणउदी सट्ठी चोदालमंककमे ।।५७१ ॥ अर्थ- मिथ्यादृष्टिगुणस्थानमें कहे हुए भुजकार और अल्पतरकी संख्या समान है और वह पैंतीस. चौरानवे, साट और चवालीसके अोंको “अङ्काना वामतो मतिः" के क्रमसे रखनेपर ४,४६,०९,४३५ प्रमाण होती है सो यह भुजकारोंकी संख्या है, इतनी ही अल्पतरोंकी भी संख्या है और इन दोनों संख्याओंको मिलानेसे ८,९२,१८,८७० प्रमाण अवस्थितभंगांकी संख्या होती है, क्योंकि भुजकार व अल्पतरभंगोंमें जिस-जिस प्रकृतिका बन्ध होवे उसी प्रकृतिका द्वितीयादि समयमें जहाँ बन्ध होवे वहाँ अवस्थितबन्ध होता है। यहाँ परस्पर भंगोंका गुणा करके भुजकारादिभंग निकालनेका अभिप्राय यही है कि एक-एक भंगसे अन्यभंगोंकी अपेक्षा भुजकारादि जानना । यहाँ तक मिथ्यात्व गुणस्थानकी अपेक्षा कथन है। आगे भुजकारादिभंगों को असंयतगुणस्थान में कहते हैं
देवठ्ठवीस णरदेवुगुतीस मणुस्सतीस बंधयदे।
तिछणवणवदुगभंगा तित्थविहीणा हु पुणरुत्ता ।।५७२ ।। अर्थ- असंयतगुणस्थानमें देवगतिसहित २८ प्रकृतिकस्थानमें, मनुष्य या देवगतिसहित २९ प्रकृतिके स्थानमें एवं मनुष्यगतिसहित ३० प्रकृतिकस्थानमें ३६९९२ भुजकारभंग होते हैं। इनमें जो तीर्धङ्करप्रकृति रहित भंग हैं वे पुनरुक्त हैं, क्योंकि वे मिथ्यादृष्टिके भंगोंमें अन्तर्हित हो जाते हैं।