Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ५२५
पूर्वमें तीस प्रकृतियोंका बन्ध करता था पश्चात् उनतीस आदि प्रकृतियोंका बन्ध करे तो यह अल्पतरबन्ध कहलाता है । यहाँ तीस प्रकृतिरूप स्थानके एकभङ्गका बन्धकरके उनतीस आदि प्रकृतिरूप स्थानोंके सर्वभका बन्ध करे तो तीसप्रकृतिरूप स्थानके ४६४० भंगका बन्ध करते हुए कितने भंगोंका बन्ध करेगा? इसप्रकार त्रैराशिकविधिके होनेपर प्रमाणराशि तो तीसप्रकृतिरूप स्थानका एक भेद है, फलराशि क्रमसे उनतीस प्रकृतिरूप स्थानके ९२४८ अट्ठाईसप्रकृति के ९, छब्बीसप्रकृतिके ३२, पच्चीसप्रकृतिरूप स्थानके ७० और तेईसप्रकृतिरूप स्थान के ११ भक्त हैं इन सभीको परस्पर जोड़ देनेपर ९२४८+९+३२+७०+११ = ९३७० फलराशिका प्रमाण हुआ तथा सर्वत्र इच्छाराशिका प्रमाण तीसप्रकृतिके ४६४० भन हैं। इच्छाराशिसे फलराशिको गुणा करनेपर और प्रमाणराशि एकसे भाग देनेपर ९३७०x४६४० =४,३४,७६,८०० प्रमाण ३० प्रकृतिरूप स्थानसम्बन्धी अल्पतरके भङ्ग हुए । उनतीसप्रकृतिका पूर्व में बन्ध करता था अनन्तर २८ आदि प्रकृतियोंका बन्ध करे तब अल्पतरबन्ध होता है। अतः उनतीसप्रकृतिके एकभंगका बन्धकरके २८ आदि प्रकृतियोंके सर्वभंगोका बन्ध करता है तो उनतीस प्रकृतिरूप स्थानके ९२४८ भंगका बन्ध करते हुए कितने भंगको बाँधेगा? इसप्रकार त्रैराशिक करनेपर यहाँ प्रमाणराशि तो उनतीस प्रकृतिके स्थानका एक भेद, फलराशि क्रमसे अट्ठाईसप्रकृतिक स्थानके ९, २६ प्रकृतिक स्थानके ३२, पच्चीसप्रकृतिके ७० और तेईसप्रकृतिके ११ भंग जानना । इन सबको परस्पर मिला देनेसे ९+३२+७०+११ = १२२ यह फ़लराशिका प्रमाण हुआ, इच्छाराशि उनतीस प्रकृतिरूप स्थानके ९२४८ भंग जानना । फलराशि १२२ को इच्छाराशि ९२४८ से गुणा करनेपर और प्रमाणराशि एक का भाग देनेपर १२२०९२४८÷१ - ११,२८,२५६ प्रमाण उनतीस प्रकृतिरूप बन्धस्थानके अल्पतरभंग हैं । २८ प्रकृतिरूप स्थानके १ भेदका बन्ध करके छब्बीस आदि प्रकृतियोंका बन्ध करता है सो यह अल्पतर बन्ध है। यहाँ अडाईसप्रकृतिके एक भंगका बन्धकरके छब्बीस आदि प्रकृतियोंके सर्वभंगका बन्ध करता है तो अडाईसप्रकृतिके ९ भंगोका बन्ध करते हुए कितने भंगोंको बाँधेगा ?
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प्रकार त्रैराशिक करनेपर प्रमाणराशि तो अट्टाईसप्रकृतिरूप स्थानका एक भेद, फलराशि छब्बीसप्रकृतिके ३२, पच्चीसप्रकृतिके ७० तथा तेईसप्रकृतिरूप स्थानके ११ भङ्ग हैं इन सभीको परस्पर जोड़ देनेपर ३२+७०+११=११३ और इच्छाराशि अट्टाईसप्रकृतिके ९ भङ्गरूप है। फलराशि ११३ को इच्छाराशि ९ से गुणाकर प्रमाणराशि १ का भाग देनेसे १९३९÷१ = १०१७ प्रमाण अट्टाईस प्रकृतिरूप स्थानके अल्पतरभंग हुए।
पूर्वमें २६ प्रकृतिका बन्ध करता था, अनन्तर २५ व २३ प्रकृतिका बन्ध करने से यहाँ अल्पतरबन्ध हुआ । छब्बीस प्रकृतिके एक भङ्गका बन्ध करता था तब पच्चीस आदि प्रकृतिके सर्वभजोंको बाँधने लगा तो छब्बीसप्रकृतिके ३२ भंगोंको बाँधते हुए कितने भंगोंको बाँधेगा ? इसप्रकार त्रैराशिक विधि करनेपर प्रमाणराशि छब्बीसप्रकृतिरूप स्थानका एक भेद, फलराशि पच्चीसप्रकृतिरूप स्थानके ७० और २३ प्रकृतिरूप स्थानके ११ भंग जानना । इच्छाराशि २६ प्रकृतिरूप स्थानके ३२ भंग हैं, अतः