Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
गोम्मटसार कर्मकाण्ड-५२३
९२४८ भंगोंको बाँधते हुए कितने भंगोंको बाँधेगा? इसप्रकार त्रैराशिकविधिमें प्रमाणराशि उनतीस प्रकृतिके स्थानका एकभेद, इच्छाराशि उनतीस प्रकृतिरूप स्थानके १२४८ भंग फलराशि ३० प्रकृतिक स्थानके ४६४० भंग । फलराशि ४६४० को इच्छाराशि ९२४८ से गुणाकरके प्रमाणराशि १ का भाग देनेपर ४६४० ४१२४८ -४.२९.१०.०२.भंग उनतीस प्रकृतिरूप स्थानके भुजकार जानना। इस सम्बन्धमें प्राकृत पंचसंग्रह (ज्ञानपीठ) पृ. ३३७ से ३४९ तक भी देखना चाहिए। विस्तारके भयसे यहाँपर नहीं लिखा गया है।
तेवीसट्ठाणादो मिच्छत्तीसोत्ति बंधगो मिच्छो। णवरि हु अट्ठावीसं पंचिंदियपुण्णगो चेव ॥५६६॥
अर्थ- मिथ्यात्वगुणस्थानमें बन्धयोग्य २३ प्रकृतिकस्थानसे ३० प्रकृतिरूप स्थान पर्यन्त स्थानों के भुजकारोंका बन्ध करनेवाला मिथ्यादृष्टि जीव ही है। यहाँ विशेषता यह है कि २८ प्रकृतिक स्थानको पञ्चेन्द्रियपर्याप्त ही बाँध सकता है।
अथानन्तर भोगभूमिज जीवोंके नामकर्मसम्बन्धी बन्धस्थान कहते हैं
भोगे सुरट्ठवीसं सम्मो मिच्छो य मिच्छगअपुण्णे । तिरिउगतीसं तीसं णरउगुतीसं च बंधदि हु॥५६७ ।।
अर्थ- भोगभूमिमें पर्याप्तपञ्चेन्द्रियसम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि और 'च' शब्दसे निर्दृत्यपर्याप्तसम्यग्दृष्टि जीव देवगतिसहित २८ प्रकृतियोंको ही बाँधते हैं तथा निर्वृत्त्यपर्याप्त मिथ्यादृष्टि तिर्यञ्चगतिसहित २९ व ३० प्रकृतिरूप स्थानको और मनुष्यगतिसहित २९ प्रकृतिक स्थानको बाँधता
मिच्छस्स ठाणभंगा एयारं सदरि दुगुणसोल णवं। अडदालं बाणउदी सदाण छादाल चत्तधियं ॥५६८॥
अर्थ- पूर्वोक्त मिथ्यादृष्टिजीबके धन्धस्थानोंमें २३ प्रकृतिक स्थानके ११,२५ प्रकृतिकस्थानके ७०,२६ प्रकृतिक स्थानके ३२, अट्ठाईस प्रकृतिक स्थानके ९, उनतीसप्रकृतिक स्थानके ९२४८ और ३० प्रकृतिकस्थानके ४६४७ भंग हैं। इसप्रकार स्थान और उनके भंग जानना 1