Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-३८.५
भुज्यमानतिर्यञ्चायु व बध्यमानदेवायुरूप दो-दो भंग हैं। अबद्धायुष्क की द्वितीय व चतुर्थ पंक्ति के प्रथम व द्वितीय स्थान में भुज्यमानमनुष्यायु और भुज्यमानतिर्यञ्चायुरूप दो-दो भंग हैं। इस प्रकार देशसंयतगुणस्थान के ४० स्थानों में ४८ भंग हुए तथा प्रमत्त व अप्रमत्तगुणस्थान में ४०-४० स्थानों में एक-एक भंग की अपेक्षा ४०-४० भंग हैं।
देशसंयतगुणस्थान के ४० सत्त्वस्थानों के ४८ भंगसंबंधी सन्दृष्टि
प्रथमपंक्ति दो व तीन- अनन्तानुबंधी| मिथ्यात्व- | सम्यग्मि- | सम्यक्त्वआयु रहित | चतुष्करहित रहित थ्यात्व रहित रहित प्रथम स्थान | द्वि. स्थान | तृतीय स्थान चतुर्थ स्थान| पंचमस्थान
। १४०
बद्धा- प्रकृति तीर्थङ्कर व
भंग आ.
| अवद्धा- प्रकृति चतुप्कसहित
युक
भंग
१३८
..
. .. .
. .
.
नितीय पाक्त (तीर्थङ्कर रहित)
१३८
आहारक चतुष्क सहित
बद्धा- | प्रकृति । १४५ युष्क भंग अबद्धा-1 प्रकृति । १४४
:०
१३८
युष्क
भंग
तृतीयपंक्ति
१४२
१३६
तीर्थकर
बद्धासहित आहारक- | अबद्धाचतुष्क रहित युष्क |
प्रकृति भंग प्रकृति भंग
१ys
१३४
चतुर्थपंक्ति
१३५
तीर्थङ्कर | बद्धा
व । युष्क आहारक- |अनद्धा-1 चतुष्क रहित | युष्क
प्रकृति भंग प्रकृति भंग
१३४
। १३३