Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४२४ होने वाले प्रदेशाग्न का अवहारकाल असंख्यातगुणा है। यह अल्पबहुत्व उत्कृष्ट प्रदेश संक्रमभागहारों का है, न कि सर्वभागहारों का; क्योंकि विध्यातसंक्रमभागहार से अधःप्रवृत्तसंक्रमभागहार विशेष हीन पाया जाता है।
शंका- यह कहाँ से जाना जाता है?
समाधान- वह, प्रत्याख्यानावरणलोभ के जधन्य संक्रमद्रव्य से केवलज्ञानावरण का जघन्य संक्रम द्रव्य विशेष अधिक है, इस आगे कहे जाने वाले अल्पबहुत्व से जाना जाता है।
उसकी अपेक्षा उद्वेलनसंक्रम से संक्रांत होने वाले द्रव्य का अवहारकाल असंख्यातगुणा है। इस अल्पबहुत्व का यहाँ अवधारण करना चाहिए।'
उद्वेलनसक्रम में प्रदेशाग्र सबसे स्तोक हैं, क्योंकि उसे लाने का भागहार अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। इससे असंख्यातगुणा प्रदेशाग्र विध्यातसंक्रम में है, क्योंकि इन दोनों को लाने का भागहार अंगुल के असंख्यातवें भाग रूप से समान होने पर भी पहले भागहार से विध्यातसंक्रम का भागहार असंख्यातगुणा हीन स्वीकार किया गया है। उससे अधःप्रवृत्तसंक्रम में प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है, क्योंकि इसे लाने के लिए भागहार पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। उससे गुणसंक्रम में प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है, क्योंकि पूर्वद्रव्य के भागहार से यह द्रव्य असंख्यातगुणेहीन भागहार से सम्बन्ध रहता है। गुणसंक्रम के प्रदेशाग्र से सर्वसंक्रम में प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है, क्योंकि यह द्रव्य एक अंकप्रमाण भागहार से सम्बन्ध रखता है। इस प्रकार द्रव्यों के अल्पबहुत्व के द्वारा इन पाँच संक्रमभेदों के भागहार विशेष का भी ज्ञान करा दिया है। इसलिए इसके द्वारा रचित हुए भागहारों के अल्पबहुत्व को भी विलोमक्रम से ले जाना चाहिए। वह विलोमक्रम इस प्रकार है- सर्वसंक्रम भागहार सबसे स्तोक है, क्योंकि वह एक अंकप्रमाण है। उससे गुणसंक्रमभागहार असंख्यातगुणा है, क्योंकि यह पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। उससे अधःप्रवृत्तसंक्रम भागहार असंख्यातगुणा है, क्योंकि यह पल्य के असंख्यातवें भाग होते हुए भी पूर्व से असंख्यातगुणा है। उससे विध्यातसंक्रम भागहार असंख्यातगुणा है, क्योंकि यह अंगुल के असंख्यातवें भाग है। उससे उद्वेलनसक्रम भागहार असंख्यातगुणा है, क्योंकि अंगुल के असंख्यातवें भाग होते हुए भी पूर्व से असंख्यातगुणा है।
इति पञ्चभागहारचूलिका।
१. धवल पु.१६ पृ. ४२१ । २. जयधवल पु. ९पृ. १७२-७३।