Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ४४८
प्रकृति के बन्धरूप स्थानों में ३-३ भंगों की अपेक्षा सर्व भंग ९५ हैं इस प्रकार सभी गुणस्थानों में मिलकर भुजकार बन्ध के भंगों की संख्या १२७ जाननी चाहिए।
विशेषार्थ - यहाँ सर्वप्रथम भुजकार बन्ध के भंगों का कथन करते हैं
मिथ्यात्वगुणस्थानवर्ती जीव के मोहनीय कर्म की २२ प्रकृतियों का ही बन्ध है। इससे अधिक प्रकृति रूप मोहनीय कर्म का बन्धस्थान नहीं है अतः यहाँ भुजकारबन्ध का भंग नहीं है। सासादनगुणस्थान में बन्ध योग्य २१ प्रकृति हैं जिनके चार भंग हैं। प्रथम तो २२ प्रकृति रूप स्थान का बन्ध करके सासादन से मिथ्यात्वगुणस्थान में आता है तो यहाँ एक-एक भंग की अपेक्षा मिथ्यादृष्टि के २२ प्रकृति के बन्ध स्थान संबंधी छह भंगों में २१ प्रकृति रूप स्थान के चार भंगों का गुणा करने से इस भुजकार के २४ भंग हुए । तथैव मिश्रगुणस्थान में १७ प्रकृतिरूप स्थान के दो या है। यहाँ से जी मिध्यात्वगुणस्थान में आता है तो मिथ्यादृष्टि के २२ प्रकृति रूप ६ भंगों में १७ प्रकृति के २ भंगों का गुणा करने से इस भुजकार के १२ भंग हुए, असंयतगुणस्थान में १७ प्रकृतिरूप बन्धस्थान के दो भंग हैं। यहाँ से जीव सासादन गुणस्थान में आता है और २१ प्रकृति का बन्ध करता है जिसके चार भंग हैं। इन चार भंगों
१७ प्रकृति के दो भंगों का गुणा करने से आठ भुजकार बन्ध के भंग हुए तथा यदि मिथ्यात्व में आता है तो वहाँ २२ प्रकृति का बन्ध करता है उसके ६ भंग हैं अतः इन ६ भंगों में १७ प्रकृति के २ भंगों
१७ प्रकृति के दो भंगों का गुणा करने से इस भुजकार के १२ भंग हुए। इस प्रकार दो भुजकार बन्ध के १२+८=२० भंग जानना । देशसंयतगुणस्थान में १३ प्रकृति का बन्ध है उसके २ भंग हैं, यहाँ से गिरकर जीव मिश्र अथवा असंयतगुणस्थान में या मरण करके देव असंयत में जाता है। वहाँ १७ प्रकृति
बन्ध करता है उसके भी दो भंग हैं। अतः १३ प्रकृति रूप बन्धस्थान के २ भंगों का और १७ प्रकृति रूप दो भंगों का परस्पर गुणा करने पर इस भुजकार बन्ध के ४ भंग हुए तथा यदि सासादनगुणस्थान
आता है तो २१ प्रकृति का बन्ध करता है, उसके चार भंग हैं। इन चार भंगों का तथा पूर्वोक्त १३ प्रकृति रूप स्थान के दो भंगों का परस्पर में गुणा करने पर इस भुजकार के आठ भंग होते हैं। यदि मिथ्यात्व में आता है तो २२ प्रकृतियों को बाँधता है, इसके ६ भंग हैं, इन भंगों में पूर्वोक्त २ भंगों का गुणा करने से इस भुजकारबन्ध के १२ भंग होते हैं। इस प्रकार देशसंयतगुणस्थान सम्बन्धी १७-२१२२ प्रकृति रूप तीन भुजकार बन्ध के ४+८+१२= २४ भंग हैं। प्रमत्तगुणस्थान में ९ प्रकृति का बंध करता है उसके २ भंग हैं। यहाँ से यदि जीव देशसंयत गुणस्थान में जाता है तो वहाँ १३ प्रकृति का बन्ध करता है उसके २ भंग हैं अतः २x२=४ भंग इस भुजकारबन्ध के हैं और यदि मिश्र अथवा असंयतगुणस्थान में आता है तो वहाँ १७ प्रकृति का बन्ध करता है उसके दो भंग हैं अतः २x२-४ भंग इस भुजकार के भी हुए। यदि सासादनगुणस्थान को प्राप्त करता है तो २१ प्रकृति का बन्ध करता है इसके चार भंग हैं सो २x४ = ८ भंग इस भुजकारबन्ध के हैं तथा यदि मिथ्यात्वगुणस्थान में आवे तो २२ प्रकृति का बन्ध