Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-४९९
उद्योतसहित २६ प्रकृतिका, तिर्यञ्च व मनुष्यगतिपर्याप्तसहित २९ का, तिर्यञ्चगतिपर्याप्त उद्योतसंयुक्त ३० प्रकृतिका और पर्याप्ततिर्यञ्च पञ्चेन्द्रियसम्बन्धी नपुंसकवेदमें नरक-देवसहित २८ प्रकृतिका भी बन्धस्थान पाया जाता है। स्त्रीवेदी व पुरुषवेदीतिर्यञ्चमें छह बन्धस्थान जानना चाहिए तथा नपुंसकवेदी लयपर्याप्तक मनुष्यमें एकेन्द्रिय-विकलत्रयके समान पाँच बनाया जानाकारबिस से नपुंसक या स्त्री अथवा पुरुषवेदी पर्याप्तमनुष्य पुरुष-स्त्री-नपुंसकवेदके उदयसे भावसे पुरुष-स्त्री या नपुसंकवेदी होते हैं; द्रव्यसे पुरुषवेदी तथा भावनपुंसकत्री तथा पुरुषवेदमें अनिवृत्तिकरणके अपने-अपने सवेदभागपर्थन्त गुणस्थान जानना । यहाँ तीनोंवेदोंमें आठ-आठ बन्धस्थान जानना', किन्तु विशेष इतना है कि क्षपकश्रेणीवाले नपुंसकवेदीके देवगति और तीर्थकरप्रकृतिसहित २९-३१ प्रकृतिक बन्धस्थान नहीं पाया जाता है, क्योंकि किन्हीं चरमशरीरीके क्षपक श्रेणी में तीर्थंकरप्रकृतिका बन्ध सम्भव भी है तथापि वे जीव क्षपकश्रेणीमें पुरुषवेदके उदयसहित ही चढ़ते हैं तथा तीर्थंकरप्रकृतिके बन्धका प्रारम्भ चरमशरीरी असंयत या देशसंयतगुणस्थानवर्तीकै यदि होता है तो इनके तपकल्याणकादि तीन ही कल्याणक होते हैं और यदि प्रमत्त-अप्रमत्तगुणस्थान में तीर्थंकरप्रकृतिका बन्ध प्रारम्भ होता है तो ज्ञान व निर्वाण ये दो ही कल्याणक होते हैं तथा यदि पूर्वभवमें तीर्थंकरप्रकृतिका बन्ध किया तो उनके गर्भावतरणादि पांचों कल्याणक होते हैं, ऐसा जानना।
__ कषायमार्गणामें क्रोधादिके अनन्तानुबन्धी आदिके भेदसे चार भेद हैं, तथापि जातिका आश्रयकरके एकत्वपना ही ग्राह्य है, क्योंकि शक्तिकी प्रधानता होनेसे भेद कहनेकी विवक्षा नहीं है। इसीको स्पष्ट करते हैं-अनन्तानुबन्धी आदि बारहकषायके सर्वघातीरूपही स्पर्धक हैं, देशघातीरूप नहीं तथा सञ्वलनके स्पर्धक देशघाती एवं सर्वघातीरूप दोनों ही प्रकारके हैं। सम्यक्त्वघाती अनन्तानुबन्धी-क्रोध-मान-माया व लोभमें से किसी एकका उदय होनेपर अप्रत्याख्यानादि तीनोंका भी उदय है। तथैव देशसंयमका घातकरनेवाली अप्रत्याख्यान क्रोधादिकमें से किसी एकका उदय होनेपर प्रत्याख्यानादिका भी उदय है ही। सकलसंयमघाती प्रत्याख्यानक्रोधादिकमें से किसी एकका उदय होनेपर सज्वलनका भी उदय है तथा यथाख्यातसंयमको घातनेवाली केवल सज्वलनके उदय होनेपर प्रत्याख्यानादि तीनका उदय नहीं होता है, क्योंकि अन्यकषायोंके स्पर्धक सकलसंयमके विरोधी हैं तथा केवल प्रत्याख्यान-सज्वलनका उदय होनेपर शेष दोकषायों का उदय नहीं है। अप्रत्याख्यानादि तीनका उदय होनेपर अनन्तानुबन्धीका उदय नहीं है। इसप्रकार अनन्तानुबन्धीके उदयके साथ अप्रत्याख्यानादिकमें चारित्रमोहपना होते हुए भी इनमें सम्यक्त्व और संयमका घातपना कहा। अनन्तानुबन्धीके उदयरहित अप्रत्यारघ्यानादिका उदय देशसंयमको घातता है और अप्रत्याख्यान के उदयरहित प्रत्याख्यान और सञ्चलनका उदय सकलसंयमको घातता है तथा प्रत्याख्यानके उदयरहित केवल सज्वलनके देशघातीस्पर्धकोंका उदय यथाख्यातसंयमको
१. "त्रिपु वेदेषु प्रत्येक बंधाष्टकम्" (प्रा.पं.सं.ए. ५०२) ।