Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड - ५००
घातता है इसप्रकार शक्ति सामान्यकी विवक्षासे सोलहकषायके क्रोधादिक भेदसे चार कषाय ही ग्रहण की हैं | इसकारणसे सम्यक्त्व - देशसंयम और सकलसंयमका असंयत- देशसंयत और प्रमत्तादिकगुणस्थानमें उत्पन्न होना कहा है ।
शंका- अनन्तानुबन्धीकी तथा अन्यकषायोंकी शक्ति समान कैसे हो सकती है?
समाधान- चारज्ञानावरण, तीनदर्शनावरण, पाँच अन्तराय, चारसञ्ज्वलन और पुरुषवेद ये १७ देशघाती प्रकृतियाँ तो चार प्रकारके अनुभागरूप परिणमन करती हैं, अवशेष मिश्रमोहनीयबिना केवलज्ञानावरणादिक सर्वघाति २० प्रकृति, ८ नोकषाय और अधातियाकी ७५ प्रकृति ये सर्व प्रकृतियाँ तीन प्रकारके अनुभागरूप परिणमन करती हैं? अनुभागबन्धके कथनमें इसका वर्णन किया गया है इसलिए अनुभागशक्तिकी अपेक्षासे अनन्तानुबन्धी और अन्यकषायमें समानता सम्भव है।
बारहकषाय और सञ्चलनके देशघातीस्पर्धकों में यद्यपि कथंचित् भेद है तथापि सामान्यसंयमको घात करनेकी अपेक्षा समानकार्य करती हैं इसलिए यहाँ अनंतानुबन्धी आदि भेद नहीं कहे हैं मात्र क्रोधादि चारकषाय ही कही हैं। यहाँ क्रोधमें नामकर्मके बन्धस्थान नरकमें तो २९-३० प्रकृतिरूप दो हैं। तिर्यञ्चगतिमें आदिके छहबन्धस्थान, मनुष्यों में सर्वबन्धस्थान और देवगतिमें सामान्यसे देवगतिवत् (२५-२६-२९-३० प्रकृतिक) चार ही स्थान हैं । इसीप्रकार मान माया और लोभमें भी जानने ।
ज्ञानमार्गणामें तीन कुज्ञानोंमें आदिके छहस्थान हैं उनमें नारकियोंके तो तिर्यञ्चगतिमनुष्यगतिपर्याप्तसहित २९ प्रकृतिका तथा उद्योतसहित ३० प्रकृतिका स्थान ऐसे दोस्थान हैं। एकेन्द्रिय एवं विकलत्रयके कुमति और कुश्रुतज्ञानमें नरकगति व देवगतिसे संयुक्त २८ प्रकृतिरूप बन्धस्थानकेबिना तिर्यञ्च मनुष्यगतियुक्त २३ प्रकृतिके बन्धस्थानको आदि लेकर पाँच बन्धस्थान है । | पंचेन्द्रियतिर्यञ्चमनुष्यअपर्याप्तके कुमति-कुश्रुतसहित मिथ्यात्वगुणस्थानमें भी पूर्वोक्त पाँचस्थान हैं, तीनों कुज्ञानसहित मिथ्यात्व व सासादनगुणस्थानवर्ती पर्याप्तपञ्चेन्द्रियतिर्यच तथा मनुष्य में यथायोग्य चतुर्गतियुक्त छहस्थान हैं तथा कुज्ञानसहित भवनत्रिक व सौधर्मयुगलमें तिर्यंचगतिसंयुक्त २५ २६ २९ व ३० प्रकृतिके और मनुष्यगतिसहित २९ प्रकृतिका ये चार बन्धस्थान है । सनत्कुमार से सहस्रारस्वर्गपर्यन्त स्वर्गीर्मे संज्ञीपचेन्द्रियपर्याप्ततिर्यंच तथा मनुष्यगतिसहित २९ प्रकृतिका और तिर्यञ्च - उद्योतसहित ३० प्रकृतिका इसप्रकार दोस्थान हैं। आनतादिसे नवग्रैवेयकपर्यन्त मनुष्यगतिसहित २९ प्रकृतिका ही बन्धस्थान है। क्योंकि 'तदो णत्थि सदरचऊ' इस वचनसे यहाँ तिर्यञ्चगतिसंयुक्त स्थानका अभाव है। इसप्रकार कुज्ञानवाले जीवोंकी अपेक्षा तीन कुज्ञानोंमें छहस्थान कहे ।
१. आवरणदेसघातराय संजलण पुरिस सत्तरसं । चउविह भावपरिणदा तिहि भावा हु सेसाणं ।। १८४ ।। गोम्मटसारकर्मकाण्ड ||