Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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मसार कर्मकाण्ड-६
२९ व ३० प्रकृतिक स्थानको बाँधते हैं तथा सासाटनगुणस्थानवाले भी इसीप्रकार तिर्यञ्च और मनुष्यगतिसंयुक्त दोनों (२९-३० प्रकृतिक) स्थानोंका बंध करते हैं। मिश्र और असंयतगुणस्थानवी मनुष्यगतिसंयुक्त २९ प्रकृतिक स्थानको बाँधते हैं।
घाँपृथ्वी, निवृत्त्यपर्याप्तक थ पर्याप्त क्षायिक व कृतकृत्यवेदकसम्यग्दृष्टि तीर्थकरके सत्त्वरहित तो मनुष्यगतिसहित २९ प्रकृतिको और तीर्थकरके सत्त्वसहित मनुष्यगतियुत ३० प्रकृतिक स्थानको बाँधते हैं तथा वंशा-मेघापृथ्वीमें तीर्थङ्करके सत्त्वसहित जीव पर्याप्ति पूर्ण होनेपर नियमसे मिथ्यात्वको छोड़कर सम्यक्त्वीहोकर ३० प्रकृतिका बन्ध करते हैं। तिर्यञ्चगतिमें पर्याप्तादितीन (पर्याप्त, निर्वृत्त्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त) में सर्वएकेंद्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिद्रिय तथा लब्ध्यपर्याप्तक-निर्वृत्त्यपर्याप्तक असंज्ञीजीवोंके और नरकादिसे आया मिथ्यादृष्टि व सासादनवर्ती अपर्याप्तसञ्जी इन सभीमें तीन अशुभलेश्यायें ही हैं तथा पर्याप्तमिध्यादृष्टिअसञीमें कृष्णादि चार लेश्याएँ हैं। पर्याप्त सासादन व मिश्रगुणस्थानवीमें एवं असंयत्तसञीतिर्यञ्चोंमें छहों लेश्या हैं। भोगभूमिज निर्वृत्त्यपर्याप्तअसंयतमें जघन्यकापोतलेश्या ही है और पर्याप्तावस्थामें मिथ्यादृष्टि व सम्यग्दृष्टिके तीन शुभलेश्याही हैं, क्योंकि उत्पन्न हुए जीवोंके शरीरपर्याप्ति पूर्ण होते ही तीन शुभलेश्याएँ आगममें कही गई हैं।
मिथ्यात्वयुत बादर-सूक्ष्मपृथ्वी, अप्-तेज-वायुकाय-नित्यनिगोद, चतुर्गतिनिगोद, प्रतिष्ठितअप्रतिष्ठितप्रत्येक द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय और असञ्जी-सज्ञीपञ्चेन्द्रिय, ये ५९ प्रकारके लब्ध्यपर्याप्त व पर्याप्त तिर्थञ्चसे तथा मिथ्यादृष्टि पर्याप्त व अपर्याप्तकर्मभूमिजमनुष्यसे आकर तोन अशुभलेश्यासहित जो तिर्यञ्चजीवोंमें उत्पन्न होते हैं वे २८ प्रकृतिकस्थानबिना शेष २३-२५-२६-२९ और ३० प्रकृतिरूप पाँचस्थान बाँधते हैं और तेजकाय-बायुकायके जीव तिर्यञ्चगतियुत ही इन स्थानोंको बाँधते हैं। १९ प्रकारके लब्ध्यपर्याप्त-पर्याप्ततिर्यंच व पर्याप्त-अपर्याप्तमनुष्य मिलकर ४० प्रकारके मिथ्यादृष्टि तीनप्रकारकी अशुभलेश्याओंसे मरणकर पूर्वोक्त १९ प्रकारके मिथ्यादृष्टि पर्याप्ततिर्यंचोंमें भी उत्पन्न होते हैं।
चारों ही गतिसे आकर पूर्वोक्त १९ प्रकारके तिर्यञ्चोंमें उत्पन्न होनेवाले मिथ्यादृष्टिजीव निर्वृत्त्यपर्याप्तावस्थामें २३-२५-२६-२९ और ३० प्रकृतिरूप पाँचस्थानोंको बाँधते हैं। मिथ्यात्वगुणस्थानमें २३-२५-२६-२८-२९-३० प्रकृतिरूप छहस्थान, सासादनगुणस्थानमें २८-२९-३० प्रकृतिरूप तीनस्थान, मिश्र-असंयत और देशसंयतगुणस्थानमें एक मात्र २८ प्रकृतिरूप स्थान बँधता है। तथैव दाताके गुणोंसे सहित जिस मनुष्यने पूर्वभवमें दानयोग्य द्रव्य तीनप्रकारके पात्रों को दान दिया उसके प्रभाव से अथवा उसकी अनुमोदना करके वह मनुष्य, अनुमोदना व व्रतीतिर्यञ्चोंको दान देनेसे तिर्यञ्च मिथ्यात्वअवस्थामें तिर्यञ्चायुका बन्धकरके तीन अशुभलेश्यासहित मरणकर भोगभूमिमें मिथ्यादृष्टितिर्यच हुआ, वहाँ अपर्याप्तावस्थामें तिर्यञ्चगतिसहित तो २९-३० प्रकृतिक दोस्थान एवं मनुष्यगतियुक्त २९ प्रकृतिरूप स्थानको बाँधता है। जिसके भोगभूमिज तिर्यञ्चायुका बन्ध हुआ ऐसे तिर्यञ्च अथवा मनुष्यने